22-06-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
"बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - इस दुनिया में निष्काम सेवा केवल एक बाप ही करता है, बाकी तुम जो भी कर्म करते हो उसका फल अवश्य मिलता है''
प्रश्नः-
ड्रामा अनुसार कौन सी बात 100 प्रतिशत सरटेन है? जिसकी तुम बच्चों को खुशी है?
उत्तर:-
ड्रामा अनुसार सरटेन है कि नई राजधानी स्थापन होनी ही है।
तुम बच्चों को खुशी है कि श्रीमत पर हम अपने लिए अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हैं।
इस पुरानी दुनिया का विनाश तो होना ही है।
तुम बच्चे जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद प्राप्त होगा।
गीत:- तुम्हें पाके हमने जहाँ पा लिया है.....
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ओम् शान्ति।
- जो बच्चे कहते हैं, बाबा भी वही कहते हैं।
- बच्चे कहते हैं बाबा तुम्हें पाके हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं।
- बाप भी कहते हैं बच्चे मनमनाभव।
- बात एक ही हो गई।
- मनुष्य सब पूछेंगे कि ब्रह्माकुमार कुमारियों को इस सतसंग में जाकर क्या मिलता है?
- तो ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ कहते हैं हम बापदादा से विश्व के मालिक बनते हैं।
- विश्व का मालिक और कोई बन न सके।
- विश्व के मालिक यह लक्ष्मी-नारायण ही हैं, शिवबाबा तो विश्व का मालिक हो नहीं सकता।
- तुम बच्चे विश्व के मालिक बनते हो।
- तुम्हारा बाप विश्व का मालिक नहीं बनता।
- ऐसी निष्काम सेवा करने वाला और कोई होता नहीं।
- हर एक को अपनी सेवा का फल जरूर मिलता है।
- भक्ति मार्ग में वा किसी भी प्रकार से जो कोई कुछ भी करते हैं....सोशल वर्कर को भी सेवा का फल जरूर मिलता है।
- गवर्मेन्ट से पघार मिलता है।
- बाप कहते हैं - मैं ही एक निष्काम सेवा करता हूँ, जो बच्चों को विश्व का मालिक बनाता हूँ और मैं नहीं बनता हूँ।
- बच्चों को सुखी करके, सुखधाम का मालिक बनाए 21 जन्मों का सुख दे मैं अपने निर्वाणधाम में वा वानप्रस्थ अवस्था में बैठ जाता हूँ।
- वानप्रस्थ तो मूलवतन को ही कहेंगे।
- मनुष्य वानप्रस्थ लेते हैं।
- बच्चों को सब कुछ दे जाए सतसंग आदि करते हैं।
- गुरू करते हैं कि यह मुक्ति का रास्ता बताये।
- अब तुम बच्चे जान गये हो कि मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता कोई मनुष्य मात्र कभी किसको बता नहीं सकते।
- वे किसी को भी सद्गति दे नहीं सकते।
- अपने को भी नहीं दे सकते।
- अपने को दें तो फिर दूसरों को भी दे सकें।
- बाप आते ही हैं परमधाम से।
- वह वहाँ का रहने वाला है, तुम बच्चे भी वहाँ के रहने वाले हो।
- तुमको पार्ट बजाना है इस कर्मक्षेत्र पर।
- बाबा को भी एक बार यहाँ आना है तुम बच्चों के लिए जबकि स्वर्ग की स्थापना हो रही है तो जरूर नर्क का विनाश होना ही है।
- अभी तुम जान गये हो - शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं।
- तुम जानते हो हम मनुष्य से देवता बन रहे हैं फिर से।
- तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हर 5 हजार वर्ष बाद हम आकर फिर से ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा के बच्चे बनते हैं, वर्सा पाने के लिए।
- पतित-पावन उनको कहा जाता है।
- नॉलेजफुल ज्ञान का सागर भी है।
- योग अर्थात् याद सिखाते हैं परन्तु निराकार कैसे समझाये इसलिए कहते हैं ब्रह्मा द्वारा मनुष्य से देवता बनाता हूँ अर्थात् देवी-देवता धर्म की स्थापना कराता हूँ।
- अब वह धर्म है नहीं, फिर बनाना पड़े।
- अब फिर से आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन कर बाकी सबको मुक्तिधाम में ले जाता हूँ।
- भारत प्राचीन खण्ड है इसलिए भारत की आदमशुमारी वास्तव में सबसे जास्ती होनी चाहिए।
- ऐसी बातें और कोई की बुद्धि में नहीं आती।
- आदि सनातन देवी-देवता धर्म सबसे जास्ती बड़ा होना चाहिए।
- 5 हजार वर्ष से उन्हों की वृद्धि होती रहती है।
- बाकी और तो आते ही हैं 2500 वर्ष के बाद।
- इस्लामियों की आदमशुमारी कम होनी चाहिए फिर थोड़े समय बाद बौद्धी धर्म वाले आते हैं तो उन्हों में थोड़ा फर्क होना चाहिए।
- इस्लामी, बौद्धी आदि पहले सतोप्रधान हैं फिर धीरे-धीरे तमोप्रधान बनते हैं।
- यह भी हिसाब है।
- जो अनन्य समझदार बच्चे हैं उन्हों को ख्याल करना पड़े।
- आजकल लिखते हैं चाइनीज़ सबसे ज्यादा हैं।
- परन्तु उन्हों को सृष्टि चक्र का ज्ञान तो है नहीं।
- यह सब राज़ तुम बच्चों की बुद्धि में है।
- जो पढ़े-लिखे हैं उन्हों को डिटेल में समझाना होता है।
- देवी-देवता धर्म वालों को 5 हजार वर्ष हुए।
- तो इस समय उन्हों की संख्या बहुत होनी चाहिए।
- परन्तु देवी-देवता धर्म वाले फिर और-और धर्मो में कनवर्ट हो गये हैं।
- पहले-पहले बहुत मुसलमान बन गये फिर बौद्धी भी बहुत बने हैं।
- यहाँ भी बौद्धी बहुत हैं, क्रिश्चियन तो बेशुमार हैं।
- देवता धर्म का तो नाम ही नहीं है।
- अगर हम ब्राह्मण धर्म कहें तो भी हिन्दुओं की लाइन में डाल देंगे।
- अभी तुम जानते हो आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन हो रहा है - हम ब्राह्मणों द्वारा श्रीमत पर।
- यह भी समझ होनी चाहिए।
- धर्म गाये तो जाते हैं ना।
- यहाँ के मनुष्य अपने को हिन्दू की लाइन में ले आते हैं।
- कहेंगे हिन्दू आर्य धर्म है, सबसे पुराना है।
- भारतवासी पहले-पहले आर्य थे, बहुत धनवान थे, अब अनआर्य बन गये हैं।
- कोई अक्ल नहीं, जिसको जो आता वह धर्म का नाम रख देते हैं।
- झाड़ के पिछाड़ी छोटे-छोटे पत्ते टाल टालियाँ निकलते हैं।
- नये का थोड़ा मान होता है।
- अभी तुम बच्चे जानते हो कि हम बाबा से स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं।
- तो ऐसे वर्सा देने वाले बाप को कितना याद करना चाहिए।
- तुम जितना जास्ती याद करेंगे एक तो वर्सा मिलेगा और तुम पावन बनेंगे।
- लौकिक बाप से तो धन का वर्सा मिलता है।
- साथ-साथ फिर पतित बनने का भी वर्सा मिलता है।
- वह लौकिक बाप, वह पारलौकिक बाप और यह है बीच में अलौकिक बाप।
- इनको बीच में दोनों तरफ से जोड़ दिया जाता है।
- शिवबाबा को तो कोई तकलीफ नहीं होती है, इनको कितनी गाली खानी पड़ती है।
- वास्तव में कृष्ण को गाली नहीं मिलती है।
- बीच में फँसा है यह।
- कहते हैं ना - रास्ते चलते ब्राह्मण फँसा।
- गाली खाने के लिए यह फँसा है।
- अलौकिक बाप को ही सहन करना पड़ता है।
- यह किसको पता ही नहीं कि शिवबाबा इनमें प्रवेश कर आए पतितों को पावन बनाते हैं।
- पवित्र बनने पर ही मार खाते हैं।
- बाप कहते हैं - मैं आया हूँ सबको वापिस ले जाने।
- तुम जानते हो, मौत सामने खड़ा है। विनाश तो जरूर चाहिए।
- विनाश बिगर सुख शान्ति कैसे हो।
- जब कोई लड़ाई आदि लगती है तो मनुष्य यज्ञ आदि रचते हैं, लड़ाई बन्द हो जाए।
- तुम ब्राह्मण कुल भूषण जानते हो विनाश तो जरूर होगा।
- नहीं तो स्वर्ग के गेटस कैसे खुलेंगे।
- सब स्वर्ग में तो नहीं आयेंगे।
- जो पुरूषार्थ करेंगे वही चलेंगे बाकी जायेंगे मुक्तिधाम।
- यह किसको भी पता न होने के कारण कितना डरते हैं।
- शान्ति के लिए कितना धक्का खाते हैं।
- कान्फ्रेन्स करते रहते हैं।
- सिर्फ तुम ब्राह्मण ही जानते हो सुखधाम, शान्तिधाम की कैसे स्थापना हो रही है।
- विनाश के सिवाए स्थापना हो न सके।
- तुम अभी त्रिकालदर्शी बने हो।
- तीसरा नेत्र ज्ञान का मिला है।
- वह तो कहते रहते हैं पीस कैसे हो?
- अर्थात् कोई भी लड़े नहीं।
- सभी कहते हैं वन नेस हो।
- एक ही बाप की मत लें कि हम सब एक बाप के बच्चे भाई-भाई हैं तो वन नेस हो जायेगी।
- एक बाप के बच्चे हैं तो आपस में लड़ना नहीं चाहिए।
- यह भी तो सतयुग में ही था।
- वहाँ कोई भी आपस में लड़ते नहीं।
- वह तो सतयुग की बात हो गई, यहाँ तो है कलियुग।
- बरोबर सतयुग में देवता थे, बाकी सब आत्मायें कहाँ थी पता नहीं पड़ता।
- तुम अब समझते हो, एक राज्य सिर्फ सतयुग में ही था।
- वहाँ सुख-शान्ति सब था।
- यह सब बातें तुम्हारी बुद्धि में हैं - नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।
- समझते हैं, बरोबर हम सतयुग में राज्य करते थे, बहुत सुख था।
- अद्वेत धर्म था।
- यह ज्ञान किसको है नहीं।
- इस समय तुम नॉलेजफुल बनते हो।
- बाप तुमको आप समान बनाते हैं।
- जो बाप की महिमा वही तुमको बनना है।
- सिर्फ दिव्य दृष्टि की चाबी बाप के पास रहती है।
- बाप ने बताया है - भक्ति मार्ग मे मुझे काम करना पड़ता है, जो जिसकी पूजा करते हैं मैं उनकी मनोकामना पूरी करता हूँ।
- यहाँ भी दिव्य दृष्टि का पार्ट चलता है।
- कहते हैं ना - अर्जुन ने विनाश का साक्षात्कार किया।
- विनाश भी जरूर होना है।
- विष्णुपुरी भी जरूर स्थापन होनी है।
- बाप ने जैसे कल्प पहले समझाया था - वैसे ही बैठ समझाते हैं।
- बाबा हमको मनुष्य से देवता बनाते हैं।
- जब देवता बनते हैं तो आसुरी सृष्टि का विनाश जरूर होगा।
- चारों तरफ हाहाकार मचना है।
- बुद्धि समझ सकती है, नेचुरल कैलेमिटीज़ आनी हैं।
- मूसलधार बरसात भी होनी है।
- इन सबका विनाश हो जाए तब सतयुग की स्थापना हो।
- 5 तत्वों की खाद भी मिल जायेगी।
- इस धरती को खाद देखो कितनी मिलती है।
- बाप कहते हैं - इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में यह सब स्वाहा हो जायेगा।
- भक्ति मार्ग में देखो रूद्र यज्ञ कैसे रचते हैं।
- शिवबाबा का लिंग और छोटे-छोटे सालिग्राम बहुत बनाकर पूजा करके फिर मिटा देते हैं, फिर रोज़ बनाते हैं।
- पूजा करके फिर तोड़ देते हैं।
- शिवबाबा के साथ जिन्होंने भी सर्विस की उन्हों का भी यह हाल करते हैं।
- रावण की देखो हर वर्ष एफीजी बनाए उनको जलाते हैं।
- दुश्मन की तो एक दो बार एफीजी बनाए जलाते हैं, ऐसे नहीं कि वर्ष-वर्ष जलाने का नियम रखते हैं।
- एक बार ही गुस्सा निकाल देंगे।
- रावण को तो हर वर्ष जलाते हैं।
- इनका अर्थ कोई समझते थोड़ेही हैं।
- फिर कहते हैं रावण ने सीता को चुराया, कुछ अर्थ नहीं समझते।
- फॉरेनर्स क्या समझेंगे, कुछ भी नहीं।
- दिन-प्रतिदिन रावण को बड़ा बनाते जाते हैं क्योंकि रावण बहुत दु:ख देने वाला है।
- अभी तुम इस पर जीत पाते हो।
- सतयुग में होगा ही नहीं।
- यह जो कर्म की भोगना, बीमारी आदि होती है, यह है रावण के कारण।
- रावण की प्रवेशता होने के कारण मनुष्य जो भी कर्म करते हैं, वह विकर्म हो जाते हैं।
- सुख-दु:ख का खेल बना हुआ है।
- इस हिस्ट्री-जॉग्राफी का किसको भी पता नहीं है।
- लक्ष्मी-नारायण को यह राज्य कैसे मिला?
- किसको पता नहीं।
- तुम छोटे-छोटे बच्चे समझाते हो - यह लक्ष्मी-नारायण सतयुग में राज्य करते थे।
- संगम पर यह राजयोग सीख यह पद पाया है।
- बिड़ला को भी छोटी-छोटी बच्चियाँ जाकर समझायें कि इन्होंने यह राज्य कैसे पाया?
- अभी तो कलियुग है, इनको सतयुग नहीं कहा जाता।
- राजाई तो अभी है नहीं।
- राजाओं का ताज ही उड़ा दिया है। धर्म शास्त्र सिर्फ 4 हैं।
- गीता धर्म शास्त्र है, जिससे 3 धर्म अभी स्थापन होते हैं, न कि सतयुग में।
- ऐसे नहीं कि लक्ष्मी-नारायण ने वा राम ने कोई धर्म स्थापन किया।
- यह धर्म अभी स्थापन कर रहे हैं फिर इस्लामी, बौद्धी और क्रिश्चियन।
- क्रिश्चियन का एक ही धर्म शास्त्र है बाइबिल, बस।
- फिर पीछे वृद्धि होती जाती है।
- आदि सनातन है ही देवता धर्म अब फिर से देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं।
- तुम ड्रामा के राज़ को अच्छी रीति समझ गये हो।
- खुशी भी रहती है।
- जबकि तुम बच्चों को 100 प्रतिशत सरटेन है कि हम फिर से अपना राज्य-भाग्य स्थापन कर रहे हैं - इसमें लड़ाई आदि की कोई बात ही नहीं।
- राजधानी स्थापन हो रही है, यह सरटेन है।
- एज़ सरटेन एज डेथ।
- तुम जानते हो हम फिर से राज्य भाग्य लेते हैं।
- कल्प-कल्प बाप से वर्सा लेते हैं।
- जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) जो बाप की महिमा है उस महिमा को स्वयं में लाना है।
- बाप समान महिमा योग्य बनना है।
- पारलौकिक बाप से पवित्रता का वर्सा लेना है।
- पवित्र बनने से ही स्वर्ग का वर्सा मिलेगा।
- 2) श्रीमत पर अपने ही तन-मन-धन से एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करनी है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- त्रिकालदर्शी बन व्यर्थ संकल्प व संस्कारों का परिवर्तन करने वाले विश्व कल्याण-कारी भव
- जब मास्टर त्रिकालदर्शी बन संकल्प को कर्म में लायेंगे, तो कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं होगा।
- इस व्यर्थ को बदलकर समर्थ संकल्प और समर्थ कार्य करना - इसको कहते हैं सम्पूर्ण स्टेज।
- सिर्फ अपने व्यर्थ संकल्पों वा विकर्मो को भस्म नहीं करना है लेकिन शक्ति रूप बन सारे विश्व के विकर्मो का बोझ हल्का करने व अनेक आत्माओं के व्यर्थ संकल्पों को मिटाने की मशीनरी तेज करो तब कहेंगे विश्व कल्याणकारी।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- नष्टोमोहा बनना है तो सेवा अर्थ स्नेह रखो, स्वार्थ से नहीं।
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