10-06-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति

"बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - अमर बाबा आया है तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र देने, अभी तुम तीनों कालों और तीनों लोकों को जानते हो''

प्रश्नः-

रूहानी बाप रूहों को वर्सा किस आधार पर देते हैं?

उत्तर:-

पढ़ाई के आधार पर।

जो बच्चे अच्छी रीति पढ़ते हैं देह-अभिमान को छोड़ देही-अभिमानी रहने का पुरूषार्थ करते हैं, उन्हें ही बाप का वर्सा मिलता है।

लौकिक बाप सिर्फ बच्चों को वर्सा देते लेकिन पारलौकिक बाप का सम्बन्ध रूहों से है, इसलिए रूहों को वर्सा देते हैं।

गीत:- भोलेनाथ से निराला...

 

गीत:- भोलेनाथ से निराला...


  • ओम् शान्ति।
  • रूहानी बच्चे, रूहानी बाप से अमरकथा सुन रहे हैं - इस मृत्युलोक से अमरलोक में जाने के लिए।
    • निर्वाणधाम को अमरलोक नहीं कहा जाता।
    • अमरलोक जहाँ तुम अकाले मृत्यु को नहीं पाते हो इसलिए उनको अमरलोक कहा जाता है।
    • रूहानी बाप जिसको अमरनाथ कहा जाता है।
    • जरूर अमरलोक में ले जाने के लिए मृत्युलोक में कथा सुनायेंगे।
  • तीन कथायें भारत में ही मशहूर हैं।
    • अमरकथा, सत्य नारायण की कथा, तीजरी की कथा।
    • भक्ति मार्ग में तो तीजरी का अर्थ कोई समझते ही नहीं हैं।
    • ज्ञान का तीसरा नेत्र सिवाए ज्ञान सागर अमर बाबा के कोई दे न सके।
    • यह भी झूठी कथायें सुनाते हैं।
  • मीठे-मीठे रूहानी बच्चे अब जान गये हैं कि हमको अब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिल रहा है, जिस तीसरे नेत्र से तीनों कालों, तीनों लोकों को तुम जान चुके हो।
    • मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन के आदि-मध्य-अन्त को भी जान चुके हो इसलिए बच्चे अपने को त्रिकालदर्शी भी समझते हैं।
    • तुम मीठे-मीठे बच्चों बिगर सृष्टि में कोई त्रिकालदर्शी नहीं होता।
    • तीनों कालों अर्थात् सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते।
    • मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन को बहुत जानते हैं।
    • परन्तु तीनों कालों के आदि-मध्य-अन्त को कोई नहीं जानते।
  • अब मीठे-मीठे रूहानी बच्चे रूहानी बाप से सुन रहे हैं।
    • हम उनके बच्चे बने हैं।
    • एक ही बार तुम रूहानी बच्चों को रूहानी बाप मिला है।
    • रूहों को पढ़ाते हैं और सब देह-अभिमानी होने के कारण कहते हैं - मैं यह पढ़ता हूँ।
      • मैं यह करता हूँ।
      • देह-अभिमान आ जाता है।
    • अभी इस संगम पर रूहानी बाप आकर रूहानी बच्चों को कहते हैं तुम अच्छी रीति पढ़ो।
  • बाप से हर एक बच्चा वर्सा लेने का हकदार है क्योंकि सब रूहानी बच्चे हो ना।
    • लौकिक सम्बन्ध में सिर्फ बच्चा वर्से का हकदार बनता है।
    • इस पारलौकिक सम्बन्ध में सभी बच्चों, रूहों को वर्सा मिलता है।
    • अमरनाथ की भी कथा सुनाते हैं।
    • कहते हैं पार्वती को पहाड़ी पर, कन्दराओं में जाकर कथा सुनाई।
      • यह तो रांग है ना।
      • अब तुम बच्चे जानते हो झूठ क्या है, सच क्या है।
      • सच तो जरूर सच्चा बाबा ही सुनायेंगे।
  • बाप एक ही बार सच सुनाए सचखण्ड का मालिक बनाते हैं।
    • तुम जानते हो इस झूठ खण्ड को आग लगनी है।
    • यह जो कुछ देखने में आता है, यह नहीं रहेगा।
    • समय बाकी थोड़ा है।
  • यह शिवबाबा का ज्ञान यज्ञ है।
    • जैसे लौकिक सम्बन्ध में भी बाप यज्ञ रचते हैं।
    • कोई रूद्र यज्ञ रचते हैं, कोई गीता यज्ञ। कोई रामायण यज्ञ रचते हैं।
    • यह है शिवबाबा वा रूद्र ज्ञान यज्ञ।
      • यह अन्तिम यज्ञ है।
  • तुम जानते हो हम अमरपुरी में अब जा रहे हैं।
    • बाकी थोड़े मिनट का अब रास्ता है।
      • कोई भी मनुष्य को यह पता नहीं है।
      • वह तो कह देते हैं - मुत्युलोक से अमरलोक में जाने के लिए 40 हजार वर्ष अभी पड़े हैं।
      • अमरलोक सतयुग को कहा जाता है।
  • तुम बच्चों को अभी बाबा सम्मुख बैठ अमरकथा, तीजरी की कथा, सत्य नारायण की कथा सुना रहे हैं।
    • भक्ति मार्ग में क्या-क्या होता है, वह तो देखा।
    • भक्ति मार्ग का कितना विस्तार है।
    • जैसे झाड का बड़ा विस्तार होता है वैसे ही भक्ति का भी बड़ा कर्मकाण्ड का झाड है।
    • यज्ञ, व्रत, नेम, जप-तप आदि कितना करते हैं।
    • इस जन्म के भक्त तो बहुत बैठे हैं।
    • मनुष्यों की वृद्धि होती रहती है।
  • तुम भक्ति मार्ग में आये हो तब से दूसरे धर्म स्थापन हुए हैं।
    • हर एक का अपने धर्म से कनेक्शन है।
    • हर एक की रसम-रिवाज अलग है।
    • भारत अमरपुरी था, भारत अब मृत्युलोक है।
    • तुम आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले थे।
    • परन्तु अब पतित होने के कारण तुम अपने को देवता कहला नहीं सकते।
    • यह तुमको भूल गया है कि हम सो देवता थे।
      • जैसे कहते हैं क्राइस्ट ने हमारा धर्म स्थापन किया तो हमारे क्रिश्चियन चले आये हैं।
      • ऐसे नहीं कि यूरोपियन धर्म के हैं।
      • वैसे तुम हिन्दुस्तान में रहने वाले अथवा भारत में रहने वाले देवी-देवता धर्म के हो।
    • परन्तु अपने को देवता कहला नहीं सकते।
    • समझते हो हम तो पापी नीच, कंगाल, विकारी हैं।
  • भक्ति मार्ग में मनुष्य दु:खी होते हैं तो बाप को ही पुकारते हैं।
    • यह सिर्फ तुम ब्राह्मण बच्चे ही जानते हो कि जिस बाप को पुकारते आये हैं वह हमको बेहद का वर्सा देने के लिए अमरकथा सुना रहे हैं।
    • हम अमरपुरी के मालिक बनने वाले हैं।
    • अमरपुरी को स्वर्ग कहा जाता है।
    • तुम कहेंगे हम स्वर्गवासी बनने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हैं।
  • कलियुग में मनुष्य मरते हैं तो कहते हैं स्वर्ग-वासी हुआ।
    • अब उसने कोई स्वर्ग में जाने के लिए पुरूषार्थ थोड़ेही किया?
    • तुम तो पुरूषार्थ कर रहे हो अमरपुरी बैकुण्ठ में जाने के लिए।
    • पुरूषार्थ कराने वाला कौन?
    • अमर बाबा, जिसको अमरनाथ भी कहा जाता है।
  • इस यज्ञ को पाठशाला भी कहा जाता है।
    • दूसरे कोई पाठशाला को यज्ञ नहीं कहा जाता।
    • यज्ञ अलग रचे जाते हैं, जिसमें ब्राह्मण लोग बैठ मन्त्र पढ़ते हैं।
    • बाप कहते हैं यह तुम्हारा कॉलेज भी है, यज्ञ भी है, दोनों इकट्ठे हैं।
  • तुम जानते हो इस ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला प्रज्वलित हुई है, इसमें सारी दुनिया स्वाहा हो जानी है।
    • फिर नई दुनिया बननी है, इसका नाम ही है महाभारी महाभारत लड़ाई।
    • इस जैसी लड़ाई और कोई होती नहीं।
    • कहते हैं युद्ध में मूसलों से लड़ाई हुई।
    • तुम्हारे साथ लड़ाई तो है नहीं।
    • इसको महाभारत लड़ाई क्यों कहते हैं?
    • भारत में तो एक ही धर्म होता है ना।
    • मौत तो बाहर है।
    • यहाँ लड़ाई की तो बात नहीं है।
    • बाप समझाते हैं - तुम्हारे लिए नई दुनिया चाहिए तो जरूर पुरानी दुनिया का विनाश होगा।
  • तुम बच्चों की बुद्धि में विराट रूप का भी सारा ज्ञान है।
    • यह भी समझते हो जो कल्प पहले आये थे वही आयेंगे देवता बनने के लिए।
    • बुद्धि का काम है।
    • हम जितने ब्राह्मण बने हैं, अब फिर देवता बनेंगे।
    • प्रजापिता ब्रह्मा भी गाया हुआ है।
  • परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रचते हैं इसलिए ब्रह्मा को प्रजापिता कहते हैं।
    • परन्तु कैसे, कब रचते हैं?
    • यह कोई नहीं जानते।
    • क्या शुरू में मनुष्य नहीं हैं जिनको रचते हैं?
    • बुलाते ही हैं पतित-पावन आओ।
    • तो जब मनुष्य पतित होते हैं तब तो बाप आते हैं।
    • दुनिया को बदलना है।
    • तुमको बाप नई दुनिया का लायक बनाते हैं।
    • अभी सब तमोप्रधान पुरानी दुनिया में हो फिर सतोप्रधान बनना है।
  • बाप ने समझाया है - हर एक मनुष्य मात्र को, हर चीज़ को सतो-रजो-तमो में आना होता है।
    • दुनिया नई से पुरानी जरूर होती है।
    • कपड़ा भी नया पहनते हैं फिर पुराना होता है।
    • तुमको ज्ञान मिला है, सच्ची सत्य नारायण की कथा अभी तुम सुन रहे हो।
  • गीता है सर्वशास्त्रमई शिरोमणी।
    • बाकी हैं उनके बाल बच्चे।
    • जैसे ब्रह्मा की वंशावली, वैसे गीता है मुख्य।
    • ऊंच ते ऊंच माँ-बाप, बाकी हैं बच्चे।
    • अभी माँ बाप से वर्सा मिल सकता है।
    • बाकी कितने भी शास्त्र पढ़ें, कुछ भी करें, वर्सा मिल न सके।
    • करके जो शास्त्र पढ़ते हैं, उनकी बहुत कमाई होती है।
    • वह तो हो गया अल्पकाल के लिए।
  • यहाँ तुम बच्चे सुनते हो तो कितनी कमाई करते हो - 21 जन्म के लिए, विचार करो।
    • वह एक सुनायेंगे, सब उनको पैसे देंगे।
    • यहाँ बाप तुम बच्चों को सुनाते हैं - तुम 21 जन्म के लिए कितने साहूकार बनते हो।
    • वहाँ सुनाने वाले की जेब भरती है।
  • भक्ति आदि करना प्रवृत्ति मार्ग वालों का काम है।
    • तुम हो प्रवृत्ति मार्ग वाले।
    • तुम जानते हो - स्वर्ग लोक में हम पूज्य थे।
    • नहीं तो 84 जन्मों का हिसाब कहाँ से आये?
  • यह है रूहानी ज्ञान, जो सुप्रीम रूह ज्ञान सागर से मिलता है।
    • पतित-पावन बाप ही सबके सद्गति दाता हैं।
    • हम बच्चों को अमरकथा सुना रहे हैं।
    • जन्म-जन्मान्तर झूठी कथा सुनते आये हो।
    • अब सच्ची कथा सुनकर तुम 16 कला सम्पूर्ण बनते हो।
  • चन्द्रमा को 16 कला सम्पूर्ण कहा जाता है।
    • सूर्य के लिए नहीं कहते हैं।
    • तुम जानते हो हम आत्मायें भविष्य में सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण बनेंगे।
    • फिर आधकल्प के बाद उन्हों में खाद पड़ जाती है।
    • अभी तुम समझते हो हम फिर से सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पन्न.....सो देवता फिर से बन रहे हैं।
    • हम आत्मायें पहले अपने घर जायेंगे फिर हम शरीर धारण कर सो देवता बनेंगे फिर चन्द्रवंशी घराने में आयेंगे।
  • 84 जन्मों का हिसाब-किताब चाहिए।
    • किस युग में, किस वर्ष में कितने जन्म हुए, बाप ने 84 जन्मों की सच्ची-सच्ची कथा अब सुनाई है।
    • तुम बच्चों को कहेंगे तुम भारतवासी 84 जन्म लेते हो।
    • अपने को एक तो ब्राह्मण समझना पड़े।
    • मम्मा बाबा कहते हो ना।
  • वर्सा शिवबाबा से लेते हो, ब्रह्मा बाबा द्वारा।
    • ब्रह्मा भी उनका हो गया।
    • ब्रह्मा से वर्सा मिल न सके।
    • यह भी भाई हो गया।
    • यह शरीरधारी है ना।
    • तुम सब बच्चे वर्सा उनसे लेते हो।
    • इन (ब्रह्मा) से नहीं।
    • जिससे वर्सा नहीं पाना है, उनको याद नहीं करना है।
    • एक शिवबाबा को ही याद करना है।
      • उनको ही कहते हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे।
    • तुम इनके पास आते हो तो बुद्धि में रहता है, हम शिवबाबा के पास जाते हैं।
    • याद शिवबाबा को ही करना है।
  • आत्मा बिन्दी है, उसमें 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है।
    • आत्मा भ्रकुटी के बीच में रहती है।
    • उड़ती भी सेकेण्ड में है, मैं आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेता हूँ।
    • भ्रकुटी के बीच जाए विराजमान होता हूँ।
    • बुद्धि में समझ है - हमारी आत्मा ऐसी है।
    • सतयुग में तो कोई ऐसी चीज़ देखने की आशा नहीं रहती।
    • आत्मा को देख सकते हैं, दिव्य दृष्टि से।
    • कोई इन आंखों से देखने की बात नहीं है।
  • भक्ति मार्ग में ही साक्षात्कार करते हैं।
    • जैसे रामकृष्ण का शिष्य विवेकानंद था, उसने बताया है मैं सामने बैठा था तो उनकी आत्मा निकल मेरे में प्रवेश हो गई। ऐसे कोई होता नहीं है।
    • आत्मा कैसे एक शरीर छोड़ दूसरे में प्रवेश करती है, यह सब बातें तुम बच्चों को समझाई जाती हैं।
  • अभी तुम समझते हो हम अमरलोक में जाने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हैं, अमरलोक में हम जन्म लेंगे।
    • वहाँ हम गर्भ महल में होंगे।
    • यहाँ तो गर्भजेल में बहुत त्राहि-त्राहि करते हैं।
    • अब आधाकल्प के लिए बाबा तुमको सब दु:खों से छुड़ाते हैं।
    • तो कितना प्यार से ऐसे बाप को याद करना चाहिए।
  • अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) स्वयं को रूह समझ, रूहानी बाप से पढ़कर पूरा वर्सा लेना है।
    • सचखण्ड का मालिक बनने के लिए सच्ची कथा सुननी और सुनानी है।
  • 2) जिस बाप से बेहद का वर्सा मिलता है, उसे ही याद करना है।
    • किसी देहधारी को नहीं।
    • इस पुरानी दुनिया को आग लगनी है इसलिए इसे देखते भी नहीं देखना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • मनमनाभव की विधि द्वारा मनरस की स्थिति का अनुभव करने और कराने वाले सर्व बन्धनमुक्त भव
  • जो बच्चे लोहे की जंजीरे और महीन धागों के बंधन को तोड़ बन्धनमुक्त स्थिति में रहते हैं वे कलियुगी स्थूल वस्तुओं की रसना वा मन के लगाव से मुक्त हो जाते हैं।
  • उन्हें देह-अभिमान वा देह के पुरानी दुनिया की कोई भी वस्तु जरा भी आकर्षित नहीं करती।
  • जब कोई भी इन्द्रियों के रस अर्थात् विनाशी रस के तरफ आकर्षण न हो तब अलौकिक अतीन्द्रिय सुख वा मनरस स्थिति का अनुभव होता है।
  • इसके लिए निरन्तर मनमनाभव की स्थिति चाहिए।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • सच्ची सेवा वह है जिसमें सर्व की दुआओं के साथ खुशी की अनुभूति हो।