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ओम् शान्ति।
- यह किसने कहा?
- दो बार कहते हैं ओम् शान्ति, ओम् शान्ति।
- एक शिवबाबा ने कहा, एक ब्रह्मा बाबा ने।
- यह बापदादा इकट्ठे हैं।
- तो दोनों को बोलना पड़े ओम् शान्ति, ओम् शान्ति।
- अब पहले किसने कहा?
- बाद में किसने कहा?
- पहले शिवबाबा ने कहा ओम् शान्ति।
- मैं शान्ति का सागर हूँ, पीछे किसने कहा?
- दादा की आत्मा ने कहा।
- बच्चों को याद दिलाते हैं ओम् शान्ति, मैं तो सदैव देही-अभिमानी हूँ, कभी देह-अभिमान में नहीं आता हूँ।
- एक ही बाप है जो सदैव देही-अभिमानी रहते हैं।
- ब्रह्मा, विष्णु, शंकर ऐसे नहीं कहेंगे।
- तुम जानते हो ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी सूक्ष्म रूप है।
- तो ओम् शान्ति करने वाला एक शिवबाबा है, जिसको कोई शरीर नहीं।
- बाप तुमको अच्छी रीति समझाते हैं और कहते हैं मैं एक ही बार आता हूँ, मैं सदैव देही-अभिमानी हूँ।
- मैं पुनर्जन्म में नहीं आता इसलिए मेरी महिमा ही न्यारी है।
- मुझे कहते हैं निराकार परमपिता परमात्मा।
- भक्ति मार्ग में भी शिव के लिए कहेंगे निराकार परमपिता परमात्मा है।
- निराकार की पूजा होती है।
- वह कभी देह में नहीं आते हैं अर्थात् देह-अभिमानी नहीं बनते हैं।
- अच्छा फिर उसके नीचे आओ सूक्ष्मवतन में, जहाँ ब्रह्मा-विष्णु-शंकर रहते हैं।
- शिव का नाम रूप तो देखने में नहीं आता है।
- चित्र बनते हैं लेकिन वह है निराकार, वह कभी साकार बनते ही नहीं।
- पूजा भी निराकार की ही होती है।
- बच्चों की बुद्धि में सारा ज्ञान रहता है।
- भक्ति तो की है।
- चित्र बच्चों ने देखा है, तुम जानते हो सतयुग-त्रेता में न चित्रों की भक्ति होती, न विचित्र की।
- बुद्धि में आता है परमपिता परमात्मा विचित्र है।
- उनका न सूक्ष्म, न स्थूल चित्र है।
- उनकी महिमा गाई जाती है, दु:ख हर्ता, सुख कर्ता, पतित-पावन।
- तुम और किसी के चित्र को पतित-पावन नहीं कहेंगे।
- कोई भी मनुष्य नहीं जिनकी बुद्धि में यह बात हो।
- ब्रह्मा-विष्णु-शंकर हैं सूक्ष्मवतनवासी।
- पहला तबका फिर दूसरा तबका।
- ऊंच ते ऊंच मूलवतन, उस तबके में रहने वाला है परमपिता परमात्मा।
- सेकण्ड नम्बर तबके में सूक्ष्म शरीर वाले हैं।
- थर्ड तबके में स्थूल शरीरधारी हैं, इसमें मूँझना नहीं है।
- यह बातें सिवाए परमपिता परमात्मा के कोई समझा नहीं सकता है।
- ऊपर में सृष्टि है आत्माओं की।
- उसको कहा जाता है निराकारी दुनिया, हम सब आत्माओं की दुनिया, इनकारपोरियल वर्ल्ड।
- फिर हम आत्मायें कारपोरियल वर्ल्ड में आती हैं।
- वहाँ हैं आत्मायें, यहाँ हैं जीव आत्मायें।
- यह बुद्धि में रहना चाहिए।
- बरोबर हम निराकारी बाबा के बच्चे हैं।
- हम भी पहले निराकार बाप के पास रहते थे।
- निराकारी दुनिया में ही आत्मायें रहती हैं।
- जो अभी तक पार्ट बजाने लिए आते रहते हैं - साकार में।
- वह हो गया निराकार बाप का वतन।
- हम आत्मा हैं, यह नशा होना चाहिए।
- अविनाशी चीज़ का नशा रहना चाहिए।
- विनाशी चीज़ का थोड़ेही होना चाहिए।
- देह के नशे वाले को देह-अभिमानी कहा जाता है।
- देह-अभिमानी अच्छे वा आत्म-अभिमानी अच्छे?
- सेन्सीबुल कौन?
- आत्म-अभिमानी।
- आत्मा ही अविनाशी है, देह तो विनाशी है।
- आत्मा कहती है हम 84 देह लेते हैं।
- हम आत्मा परमधाम में बाप के साथ रहने वाली हैं।
- वहाँ से आते हैं यहाँ पार्ट बजाने।
- आत्मा कहती है ओ बाबा।
- साकारी सृष्टि में हैं साकारी बाबा।
- निराकारी सृष्टि में निराकार बाबा।
- यह तो बिल्कुल सहज बात है।
- अब ब्रह्मा को कहते हैं प्रजापिता ब्रह्मा।
- सो तो यहाँ ठहरा ना।
- वहाँ हम आत्मायें सब एक बाप के बच्चे ब्रदर्स हैं।
- बाप शिव के साथ रहने वाले हैं।
- परमात्मा का नाम है शिव।
- आत्मा का नाम है सालिग्राम।
- आत्मा का भी रचयिता चाहिए ना।
- दिल में हमेशा बातें करते रहो।
- जो ज्ञान मिला है वह अपने दिल से लगाने के लिए मेहनत करनी है।
- आत्मा ही विचार करती है।
- पहले-पहले तो यह निश्चय करो कि हम आत्मा बाप के साथ रहने वाले हैं।
- हम उनके बच्चे हैं तो जरूर वर्सा मिलना चाहिए।
- यह भी तुम जानते हो कि यह जो आत्माओं का झाड़ है उनके पहले जरूर बीज होता है।
- जैसे सिजरा बनाते हैं।
- बड़ा बाप फिर उनसे 2-4 बच्चे निकले, फिर उनसे और निकलते।
- एक दो वृद्धि को पाते-पाते झाड़ बड़ा हो जाता है।
- बिरादरी का नक्शा होता है।
- फलाने से फलाना निकला....।
- तुम बच्चे जानते हो मूलवतन में सभी आत्मायें रहती हैं।
- उनका भी चित्र है।
- ऊंच ते ऊंच है बाप।
- तुम बच्चों की बुद्धि में है - बाबा इस शरीर में आया हुआ है।
- रूहानी बाप इनमें आकर रूहों को पढ़ाते हैं।
- सूक्ष्मवतन में तो नहीं पढ़ायेंगे।
- सतयुग में तो यह नॉलेज किसको भी रहती नहीं।
- बाप ही इस संगमयुग पर आकर यह नॉलेज देते हैं।
- इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ की नॉलेज कोई को है नहीं।
- कल्प की आयु ही बहुत बड़ी लिख दी है।
- अभी बाप तुमको समझाते हैं - बच्चे अभी तुमको फिर घर चलना है।
- वह है आत्माओं का घर।
- बाप और बच्चे रहते हैं, सब ब्रदर्स हैं।
- ब्रदर और सिस्टर तब कहा जाता है जब यहाँ शरीर धारण करते हैं।
- हम आत्मायें सब भाई-भाई हैं।
- भाई का जरूर बाप भी होगा ना।
- वह है परमपिता परमात्मा।
- सभी आत्मायें शरीर में रहते हुए उनको याद करती हैं।
- सतयुग-त्रेता में कोई याद नहीं करते हैं।
- पतित दुनिया में सभी उनको याद करते हैं क्योंकि सब रावण की जेल में हैं।
- सीता पुकारती थी हे राम।
- बाप समझाते हैं राम कोई त्रेता वाला याद नहीं आता है।
- राम परमपिता परमात्मा को समझ याद करते रहते हैं।
- आत्मा पुकारती है।
- अभी तुम जानते हो आधाकल्प फिर हम किसको पुकारेंगे नहीं क्योंकि सुखधाम में रहेंगे।
- इस समय बाप ही समझाते हैं, दूसरा कोई जानते ही नहीं।
- वह तो कह देते हैं कि आत्मा सो परमात्मा, आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है।
- बाप समझाते हैं, आत्मा तो अविनाशी है।
- एक भी आत्मा का विनाश नहीं हो सकता।
- जैसे बाप अविनाशी वैसे आत्मा भी अविनाशी है।
- यहाँ आत्मा पतित तमोप्रधान बनती है, फिर बाप सतोप्रधान पवित्र बनाते हैं।
- सारी दुनिया को तमोप्रधान बनना ही है।
- फिर सतोप्रधान बनना है।
- पतित दुनिया को पावन बनाने बाप को आना पड़ता है।
- उनको कहते ही हैं गॉड फादर।
- बाप भी अविनाशी है, हम आत्मायें भी अविनाशी हैं, यह ड्रामा भी अविनाशी है।
- तुम बच्चे जानते हो कि यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है।
- इन चारों युगों में हमारा पार्ट चलता है।
- हम सूर्यवंशी फिर चन्द्रवंशी बनते हैं।
- चन्द्रवंशी जैसे सेकण्ड ग्रेड में आ जाते हैं।
- 14 कला वालों को सूर्यवंशी नहीं कह सकते।
- वास्तव में देवी-देवता भी उन्हों को नहीं कह सकते।
- देवी-देवता सम्पूर्ण निर्विकारी, 16 कला सम्पूर्ण को कहा जाता है।
- राम को 14 कला सम्पन्न कहेंगे।
- तुम्हारे ही 84 जन्मों का हिसाब समझाया जाता है।
- नई चीज़ फिर पुरानी होती है तो वह मज़ा नहीं रहता है।
- पहले सम्पूर्ण पवित्र रहते हैं फिर थोड़े वर्ष पास होंगे तो थोड़ा पुराना कहेंगे।
- मकान का भी मिसाल दिया जाता है।
- ऐसे हर चीज़ होती है।
- यह दुनिया भी एक बड़ा माण्डवा है।
- यह आकाश तत्व बहुत बड़ा है, इसका कोई अन्त नहीं।
- इनकी एण्ड कहाँ है, वह निकाल नहीं सकते।
- चलते जाओ, एण्ड हो नहीं सकती।
- ब्रह्म महतत्व की भी कोई एण्ड हो नहीं सकती।
- यूँ साइन्स वाले कितनी कोशिश करते हैं एण्ड देखने की लेकिन जा नहीं सकते, अन्त पा नहीं सकते।
- ब्रह्म तत्व बहुत बड़ा, बेअन्त है।
- हम आत्मायें बहुत थोड़ी जगह में रहती हैं।
- यहाँ बिल्डिंग आदि कितनी बड़ी-बड़ी बनाते हैं।
- स्पेश धरती की बहुत बड़ी है।
- खेती आदि भी तो चाहिए ना।
- वहाँ तो सिर्फ आत्मायें रहती हैं।
- आत्मा शरीर बिगर कैसे खायेगी?
- वहाँ तो अभोक्ता है।
- खाने वा भोगने आदि की कोई चीज़ होती नहीं।
- बाप समझाते हैं यह ज्ञान तुम बच्चों को एक ही बार मिलता है।
- फिर कल्प बाद तुम बच्चों को दिया जाता है।
- तो यह नशा होना चाहिए।
- हम देवता धर्म वाले थे।
- तुम कहते हो बाबा आज से 5 हज़ार वर्ष पहले हम आपके पास आये थे - शूद्र से ब्राह्मण बनने।
- अब फिर हम आपके पास आये हैं।
- वह निराकार होने कारण तुम कहेंगे दादा पास आये हैं।
- बाप ने इसमें प्रवेश किया है।
- बाप कहते हैं - जैसे तुम आरगन्स ले पार्ट बजाते हो वैसे ही मैं भी आरगन्स का आधार लेता हूँ।
- नहीं तो मैं पार्ट कैसे बजाऊं?
- शिव जयन्ती भी मनाते हैं।
- शिव तो निराकार है।
- उनकी जयन्ती कैसे हुई?
- मनुष्य तो एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं।
- बाप कहते हैं - मैं कैसे आकर तुम बच्चों को राजयोग सिखाऊं।
- मनुष्य से देवता बनाने के लिए राजयोग बाप ही आकर सिखाते हैं।
- मुझे ही पतित-पावन, ज्ञान का सागर कहते हैं।
- मुझे झाड़ के आदि-मध्य-अन्त का मालूम है।
- तुम बच्चे समझते हो बाबा इसमें प्रवेश कर हमको सब नॉलेज समझाते हैं।
- ब्रह्मा-विष्णु-शंकर के पार्ट को भी समझना चाहिए।
- बाप को तो समझा है कि वह पतित-पावन है।
- हर एक की महिमा अलग-अलग, ड्युटी अलग-अलग होती है।
- प्रेजीडेन्ट, प्राइम मिनिस्टर आदि बनते हैं।
- आत्मा कहती है यह मेरा शरीर है। मैं प्राइम मिनिस्टर हूँ।
- आत्मा शरीर के साथ न हो तो बोल न सके।
- शिवबाबा भी है निराकार।
- उनको भी बोलने के लिए कर्मेन्द्रियों का आधार लेना पड़ता है, इसलिए दिखाते हैं - मुख से गंगा निकली।
- अब शिव तो है बिन्दी।
- उनको मुख कहाँ से आया?
- तो इसमें आकर बैठते हैं, उससे ज्ञान गंगा बहाते हैं।
- बाप को ही सब याद करते हैं - हे पतित-पावन आओ।
- हमको इस दु:ख से छुड़ाओ।
- वही बड़े ते बड़ा सर्जन है।
- उसमें ही पतितों को पावन बनाने का ज्ञान है।
- सर्व पतितों को पावन बनाने वाला एक सर्जन है।
- सतयुग में सब निरोगी होते हैं।
- यह लक्ष्मी-नारायण सतयुग के मालिक हैं।
- इसको ऐसे कर्म किसने सिखाये जो ऐसे निरोगी बनें।
- बाप ही आकर श्रेष्ठ कर्म सिखलाते हैं।
- यहाँ तो कर्म ही कूटते रहते हैं।
- सतयुग में तो ऐसे नहीं कहेंगे कि कर्म ऐसे हैं।
- वहाँ कोई दु:ख, रोग होता नहीं।
- यहाँ तो एक दो को दु:ख ही देते रहते हैं।
- सतयुग-त्रेता में दु:ख की बात होती नहीं, जो कहा जाए कि यह कर्मों का भोग है।
- कर्म-अकर्म-विकर्म का अर्थ कोई समझ ही नहीं सकते हैं।
- तुम जानते हो हर एक चीज़ पहले सतोप्रधान फिर सतो रजो तमो बनती है।
- सतयुग में 5 तत्व भी सतोप्रधान रहते हैं।
- हमारे शरीर भी सतोप्रधान प्रकृति के होते हैं फिर आत्मा की दो कला कम होने से शरीर भी ऐसे बनते हैं।
- सृष्टि की भी दो कला कम हो जाती हैं।
- यह सब बाप ही बैठ समझाते हैं, दूसरा कोई समझा न सके।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) अभी से ही बाप की श्रीमत पर ऐसे श्रेष्ठ कर्म करने हैं, जो फिर कभी कर्म कूटने न पड़े अर्थात् कर्मों की सज़ायें न खानी पड़े।
- 2) किसी भी विनाशी चीज़ का नशा नहीं रखना है।
- यह देह भी विनाशी है, इसका भी नशा नहीं रखना है, सेन्सीबुल बनना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- फरमान की पालना द्वारा सर्व अरमानों को खत्म करने वाले माया प्रूफ भव
- अमृतवेले से लेकर रात तक दिनचर्या में जो भी फरमान मिले हुए हैं, उसी प्रमाण अपनी वृत्ति, दृष्टि, संकल्प, स्मृति, सर्विस और सम्बन्ध को चेक करो।
- जो हर संकल्प हर कदम फरमान को पालन करते हैं उनके सब अरमान खत्म हो जाते हैं।
- अगर अन्दर में पुरूषार्थ का वा सफलता का अरमान भी रह जाता है तो जरूर कहाँ न कहाँ कोई न कोई फरमान पालन नहीं हो रहा है।
- तो जब भी कोई उलझन आये तो चारों ओर से चेक करो - इससे मायाप्रूफ स्वत: बन जायेंगे।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- अपनी सूक्ष्म कमजोरियों का चिंतन करके उन्हें मिटा देना - यही स्वचिंतन है।
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