07-06-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति

"बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - अमृतवेले का समय बहुत-बहुत अच्छा है, इसलिए सवेरे-सवेरे उठकर एकान्त में बैठ बाबा से मीठी-मीठी बातें करो''

प्रश्नः-

कौन-सी नॉलेज निरन्तर योगी बनने में बहुत मदद करती है?

उत्तर:-

ड्रामा की।

जो कुछ बीता, ड्रामा की भावी।

ज़रा भी स्थिति हलचल में न आये।

भल कैसी भी परिस्थिति हो, अर्थक्वेक आ जाए, धन्धे में घाटा पड़ जाए लेकिन ज़रा भी संशय पैदा न हो - इसको कहते हैं महावीर।

अगर ड्रामा की यथार्थ नॉलेज नहीं तो आंसू बहाते रहेंगे।

निरन्तर योगी बनने में ड्रामा की नॉलेज बहुत मदद करती है।

गीत:- ओम् नमो शिवाए........

 

गीत:- ओम् नमो शिवाए........


  • ओम् शान्ति।
  • बच्चे अब अच्छी रीति समझते हैं पतित दुनिया का अब अन्त हो रहा है।
  • पावन दुनिया की आदि हो रही है।
  • यह सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो।
  • और बच्चों को ही यह डायरेक्शन वा श्रीमत मिलती है।
  • कौन देते हैं?
  • ऊंच ते ऊंच भगवान।
  • समझाते रहते हैं कि पतित से पावन बनना है।
  • यह नॉलेज तुम्हारे लिए है और तो सब पतित हैं।
  • यह पतित दुनिया विनाश जरूर होनी है।
  • पतित कहा जाता है विकारी को।
  • बाप समझाते हैं कि तुम जन्म-जन्मान्तर एक-दो को दु:ख देते आये हो, इसलिए तुम आदि-मध्य-अन्त दु:ख पाते हो।
  • एक-दो को पतित बनाते हो।
  • पुकारते भी हैं कि हम पतित हैं, परन्तु बुद्धि में पूरा बैठता नहीं है।
  • कहते भी हैं पतित-पावन आओ परन्तु फिर भी पतितपना छोड़ते नहीं हैं।
  • अभी तुम समझते हो सारी बात है पावन बनने की।
  • यह समझाने वाला भी तो कोई चाहिए।
  • समझाने वाला है ही एक।
  • बाकी यह जो गुरू लोग हैं, ये किसको पावन बना नहीं सकते।
  • पावन भी सिर्फ एक जन्म के लिए नहीं, जन्म-जन्मान्तर के लिए बनना है।
  • तुम्हारे में भी जो ज्ञानवान हैं वे तीखे होते हैं।
  • ड्रामा अनुसार वह नूँध है।
  • तुम्हारे में भी महावीरपना चाहिए।
  • वह आयेगा बाप की याद में रहने से।
  • बाप बहुत अच्छी रीति बैठ समझाते हैं।
  • जैसे बाबा कहते हैं कि सवेरे उठकर याद करो।
  • वह समय बहुत सुन्दर है याद करने का, जिसको प्रभात कहा जाता है।
  • भक्ति मार्ग में भी कहते हैं राम सिमर प्रभात मोरे मन।
  • बाप भी कहते हैं सवेरे उठ बाप को याद करो तो बड़ा मज़ा आयेगा।
  • बाप की याद में बैठ यही ख्याल करना चाहिए कि कैसे किसको समझायें?
  • अमृतवेले का वायुमण्डल बड़ा शुद्ध रहता है।
  • दिन में तो गोरखधन्धा रहता है।
  • रात को 12 बजे तक तो विकारी वायुमण्डल रहता है।
  • साधू-सन्त, भक्त आदि सब भक्ति भी प्रभात को करते हैं। यूँ तो याद दिन में भी कर सकते हैं।
  • धन्धे में भल रहे, बुद्धि का योग, जिस देवता का पुजारी होगा उनके पास होगा।
  • परन्तु ऐसा किसका रहता नहीं है।
  • भक्ति मार्ग में सिर्फ दर्शन के लिए मेहनत करते हैं।
  • मिलता कुछ भी नहीं।
  • उनको भी भक्ति करते-करते तमोप्रधान बनना ही है।
  • भक्ति मार्ग में भी शिव पर बलि चढ़ाते हैं, जिसको काशी कलवट कहते हैं।
  • शिव को याद करते-करते कुएं में कूद पड़ते हैं।
  • शिव के ऊपर बलि चढ़ाते हैं।
  • वह है भक्ति मार्ग की बलि।
  • यह है ज्ञान मार्ग की बलि। वह भी मुश्किल, यह भी मुश्किल।
  • भक्ति मार्ग में इससे कुछ फायदा नहीं।
  • यह जैसे आत्मा अपने शरीर का घात करती है।
  • यह कोई ज्ञान नहीं है।
  • वह भी कह देते आत्मा सो परमात्मा।
  • आत्म-अभिमानी तो एक बाप ही है, जो बच्चों को समझाते हैं कि परमात्मा तो मैं एक ही हूँ।
  • हम आत्मा सो परमात्मा कहना - यह बड़े से बड़ी झूठ है। यह तो हो नहीं सकता।
  • बाप कहते हैं - मैं आता ही हूँ पतितों को पावन बनाने, सो पावन बना रहा हूँ।
  • बाकी तो ड्रामा में जो होना है सो होगा ही।
  • समझो अर्थक्वेक होती है, छत गिर जाती है, कहेंगे भावी, कल्प पहले भी ऐसे हुआ था।
  • इसमें ज़रा भी हिलने की दरकार नहीं।
  • ड्रामा पर पक्का खड़ा रहना है।
  • इसको ही महावीर कहा जाता है।
  • एक्सीडेंट आदि तो ढेर के ढेर होते रहते हैं।
  • फिर किसकी रक्षा करते हैं क्या?
  • यह तो ड्रामा में नूँध है।
  • ऐसा ही ड्रामा में पार्ट है।
  • जो ड्रामा को नहीं जानते वह देह को याद कर आंसू बहाते हैं।
  • वह कभी शिवबाबा को याद नहीं कर सकते क्योंकि शिवबाबा से प्यार नहीं है। सच्ची प्रीत नहीं है।
  • बाप के साथ तो पूरी प्रीत होनी चाहिए।
  • शिवबाबा के साथ प्रीत बुद्धि तुम कल्प-कल्प बनते हो।
  • देवताओं की बाप के साथ प्रीत बुद्धि थी, ऐसे नहीं कहेंगे।
  • उन्होंने इस प्रीत से वह पद पाया है।
  • वहाँ तो मालूम भी नहीं रहेगा - सारे कल्प में तुमको शिवबाबा का पता भी नहीं रहता है जो प्रीत रख सको।
  • अभी बाप ने अपना परिचय दिया है।
  • अब बाप कहते हैं कि और संग तोड़ मुझ एक साथ जोड़ो।
  • यह विनाश काल तो जरूर है।
  • यह भी तुम बच्चे जानते हो।
  • मनुष्य तो बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में हैं।
  • तुम अभी समझते हो हमको तो बाप से पूरा वर्सा लेना है।
  • याद बिगर सतोप्रधान नहीं बन सकेंगे।
  • सर्जन बन अपने रोग को देखना है।
  • श्रीमत पर देखना है कि हमारी बाप के साथ कितनी प्रीत है?
  • अमृतवेले ही बाप को याद करना अच्छा है।
  • प्रभात का समय बहुत अच्छा है।
  • उस समय माया के तूफान नहीं आयेंगे।
  • रात को 12 बजे तक तपस्या करने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि टाइम ही गन्दा होता है।
  • वायुमण्डल खराब रहता है।
  • तो एक बजे तक छोड़ देना चाहिए।
  • एक के बाद वायुमण्डल अच्छा रहता है।
  • बाप कहते हैं - अपना तो है ही सहज राजयोग, भल आराम से बैठो। बाबा अपना अनुभव भी सुनाते हैं।
  • कैसे बाबा से बातें करता हूँ।
  • बाबा कैसा वन्डरफुल यह ड्रामा है!
  • आप कैसे आकर पतित से पावन बनाते हो!
  • सारी दुनिया को कैसे पलटाते हो!
  • बड़ा वण्डर है!
  • जैसे बाप को ख्याल आते हैं वैसे बच्चों को भी आने चाहिए।
  • कैसे मनुष्यों का बेड़ा पार करें अथवा कैसे नईया पार करें।
  • बाप कहते हैं - तुम पुकारते रहते हो हे पतित-पावन आओ।
  • अब मैं आया हूँ, अब तुम पतित न बनो।
  • पतित होकर सभा में आकर नहीं बैठो।
  • नहीं तो वायुमण्डल अशुद्ध कर देते हो।
  • बाबा को मालूम तो पड़ता है।
  • देहली में, बाम्बे में ऐसे विकार में जाने वाले आकर बैठ जाते थे।
  • गाया हुआ है असुर आकर विघ्न डालने बैठते थे।
  • विकार में जाने वालों को असुर कहा जाता है।
  • वायुमण्डल को खराब करते हैं।
  • उनके लिए सज़ा बहुत कड़ी है।
  • बाबा समझाते तो सभी बातें हैं फिर भी अपना घाटा करने के सिवाए रहते नहीं।
  • झूठ भी बोलते हैं।
  • नहीं तो फौरन लिख देना चाहिए - बाबा, हमसे यह भूल हुई, क्षमा करना।
  • अपना पाप लिख दो।
  • नहीं तो वृद्धि को पाते रहेंगे और रसातल में चले जायेंगे।
  • आते हैं कुछ लेने लिए और ही कान कटा लेते।
  • यह भी ड्रामा में पार्ट है।
  • ऐसे असुर कल्प पहले भी थे, अब भी हैं।
  • अमृत छोड़ विष पीते हैं।
  • अपना भी घात करते हैं और औरों को भी नुकसान पहुँचाते हैं।
  • वायुमण्डल खराब कर देते हैं।
  • ब्राह्मणियाँ भी सब एक समान नहीं हैं।
  • महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे सब हैं।
  • तुम बच्चों को अथाह खुशी होनी चाहिए - बाबा मिला और बाकी क्या।
  • हाँ, अपने बच्चों आदि को जरूर सम्भालना है।
  • ऐसे नहीं कि बाबा यह सब आपके हैं, अब आप सम्भालो।
  • हम तो आपके बन गये।
  • बाप समझाते हैं कि गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बनो।
  • कोई भी पतित काम नहीं करो।
  • बस पहली बात है काम की।
  • द्रोपदी ने भी इस पर पुकारा कि हमको यह नंगन करते हैं।
  • पुकारा भी तब था जब बाप सुनने वाला आया था।
  • बाप के आने के पहले कोई भी पुकारते नहीं हैं। किसको पुकारेंगे?
  • बाबा आया है तब ही पुकारते हैं।
  • पतित से पावन बनकर फिर कहाँ जायेंगे?
  • वापिस जाना है, वह तो यही समय है।
  • सबका सद्गति दाता, लिबरेटर एक ही है।
  • यहाँ तो दु:ख है।
  • साधू-सन्त आदि कोई भी सुखी हो न सकें।
  • सबको कोई न कोई दु:ख, रोग आदि होता ही है।
  • कोई गुरू अन्धा लूला भी होता है।
  • जरूर कोई ऐसा काम किया है तब तो अन्धा लूला आदि बनते हैं।
  • सतयुग में कोई अन्धा लूला आदि थोड़ेही होगा।
  • मनुष्य थोड़ेही समझते हैं।
  • बाप ही आकर समझाते हैं।
  • बाप ही ज्ञान का सागर पतित-पावन है।
  • बाकी तो सब है भक्ति।
  • वह भक्ति मार्ग ही अलग है।
  • वह है सीढ़ी उतरने का मार्ग।
  • उतरने में, जीवनबन्ध में आने में 84 जन्म लगते हैं और फिर एक सेकण्ड लगता है जीवनमुक्त बनने में।
  • अगर उनकी मत पर चल बाप को याद करे तो।
  • नम्बरवार तो हैं ना।
  • कहते हैं हमको फलानी टीचर मिले तो अच्छा है।
  • तो जरूर खुद कमजोर है तब तो कहते हैं फलानी को 2-4 मास के लिए भेज दो।
  • बाबा कहते हैं यह भी भूल है।
  • तुम ब्राह्मणी को क्यों याद करते हो जबकि बाप सहज बात बताते हैं - सिर्फ बाप को याद करो और स्वदर्शन चक्र फिराओ, औरों को भी समझाओ।
    • बस।
  • इसमें ब्राह्मणी आकर क्या करेगी?
  • यह तो सेकण्ड की बात है।
  • तुम धन्धे-धोरी में यह भूल जाते हो फिर भी ब्राह्मणी यही कहेगी मनमनाभव।
  • कई बुद्धू लोग समझते नहीं हैं सिर्फ कहते हैं ब्राह्मणी अच्छी चाहिए।
  • ज्ञान तो तुमको मिला है ना।
  • बाप और वर्से को याद करो।
  • देह-अभिमान को छोड़ो।
  • यह हमारा सेन्टर है, यह इनका सेन्टर है।
  • यह जिज्ञासू यहाँ क्यों जाते हैं... यह सब देह-अभिमान है।
  • सब शिवबाबा के सेन्टर्स हैं, हमारा थोड़ेही सेन्टर है।
  • तुमको यह क्यों होता है कि फलाना हमारे सेन्टर पर क्यों नहीं आता।
  • कहाँ भी जाये।
  • बाबा हमेशा कहते हैं कोई से भी मांगों नहीं।
  • यह समझ सकते हैं कि बीज नहीं बोयेंगे तो मिलेगा क्या?
  • भक्ति मार्ग में भी दान-पुण्य किया जाता है।
  • तुम सब भक्ति मार्ग में ईश्वर अर्थ इनडायरेक्ट करते थे।
  • फिर संन्यासियों को भी बहुत देते हैं।
  • नहीं तो दान गरीबों को दिया जाता है, न कि साहूकारों को।
  • इसमें अनाज का दान सबसे अच्छा होता है।
  • सो भी बाप समझाते हैं दान करने से दूसरे जन्म में उसका फल मिल जाता है।
  • ईश्वर ही सबको फल देते हैं।
  • साधू-सन्त आदि कोई रिटर्न नहीं दे सकते हैं।
  • देने वाला एक ही बाप है।
  • किसके भी थ्रू देवे।
  • बाप समझाते हैं कि तुम ईश्वर अर्थ देते थे तो भी दूसरे जन्म में तुमको एवजा दिलाते थे।
  • अभी तो मैं डायरेक्ट आया हूँ।
  • अभी तुमको 21 जन्म के लिए रिटर्न मिलेगा।
  • फिर तो मौत सामने खड़ा है।
  • भक्ति मार्ग में तुमको ऐसे नहीं कहते थे कि मौत सामने खड़ा है इसलिए अपना सफल करो।
    • नहीं।
  • तो अब बाप समझाते हैं - जिसको भी चाहिए यह रूहानी हॉस्पिटल खोल दो।
  • कोई कहते हैं मकान बनायें, उसमें यह हॉस्पिटल खोलें।
  • बाप कहते हैं - आज मकान बनाओ और कल मर जाओ तो यह सब खत्म हो जायेगा।
  • शरीर पर भरोसा नहीं है।
  • जो है उसमें ही तब तक एक कमरा रख दो, जिसमें रूहानी हॉस्पिटल, रूहानी कॉलेज बनाओ।
  • बहुतों का कल्याण करेंगे तो बहुत ऊंच पद पायेंगे।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) श्रीमत पर अपने आपको देखना है कि इस विनाश काल में मेरी एक बाप से सच्ची प्रीत है?
    • और सब संग तोड़ एक संग जोड़ी है?
    • कभी कोई विकर्म करके असुर तो नहीं बनते?
    • ऐसी चेकिंग कर स्वयं को परिवर्तन करना है।
  • 2) इस शरीर पर कोई भरोसा नहीं इसलिए अपना सब कुछ सफल करना है।
    • अपनी स्थिति एकरस, अचल बनाने के लिए ड्रामा के राज़ को बुद्धि में रखकर चलना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • निष्काम सेवा द्वारा विश्व का राज्य प्राप्त करने वाले विश्व कल्याणी, रहमदिल भव
  • जो निष्काम सेवाधारी हैं उन्हें कभी यह संकल्प नहीं आ सकता कि मैंने इतना किया, मुझे इससे कुछ शान-मान वा महिमा मिलनी चाहिए...यह भी लेना हुआ।
  • दाता के बच्चे अगर लेने का संकल्प भी करते हैं तो दाता नहीं हुए।
  • यह लेना भी देने वाले के आगे शोभता नहीं। जब यह संकल्प समाप्त हो तब विश्व महाराज़न का स्टेटस प्राप्त हो।
  • ऐसा निष्काम सेवाधारी, बेहद का वैरागी ही विश्व कल्याणी, रहमदिल बनता है।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • अपनी गलती दूसरे पर लगाना - यह भी परचिंतन है।