31-05-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति

"बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - यह दुनिया कब्रिस्तान होने वाली है इसलिए इससे दिल नहीं लगाओ, परिस्तान को याद करो''

प्रश्नः-

तुम गरीब बच्चों जैसा खुशनसीब दुनिया में कोई भी नहीं, क्यों?

उत्तर:-

क्योंकि तुम गरीब बच्चे ही डायरेक्ट उस बाप के बने हो जिससे सद्गति का वर्सा मिलता है।

गरीब बच्चे ही पढ़ते हैं। साहूकार यदि थोड़ा पढ़ेंगे भी, तो उन्हें बाप की याद मुश्किल से रहेगी।

तुम्हें तो अन्त में बाप के सिवाए और कुछ भी याद नहीं आयेगा इसलिए तुम सबसे खुशनसीब हो।

गीत:- दिल का सहारा टूट न जाये....

 

गीत:- दिल का सहारा टूट न जाये....


  • ओम् शान्ति।
  • बच्चों प्रति बाप समझा रहे हैं और बच्चे समझ रहे हैं कि बरोबर यह जमाना अब कब्रिस्तान बनने वाला है।
    • पहले यह जमाना परिस्तान था, अब पुराना हो गया है इसलिए इनको कब्रिस्तान कहते हैं।
    • सबको कब्रदाखिल होना है।
    • पुरानी चीज़ कब्रदाखिल होती है अर्थात् मिट्टी में मिल जाती है।
      • यह भी सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो, दुनिया नहीं जानती।
    • कुछ विलायत वालों को मालूम होता है कि कब्रदाखिल होने का समय दिखता है।
    • तुम बच्चे भी जानते हो कि परिस्तान स्थापन करने वाला हमारा बाबा फिर से आया हुआ है।
    • बच्चे यह भी समझते हैं, अगर इस कब्रिस्तान से दिल लगाई तो घाटा पड़ जायेगा।
  • अभी तुम बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा ले रहे हो, सो भी कल्प पहले मुआफिक।
    • यह तुम बच्चों की बुद्धि में हर कदम रहना चाहिए तो यही मनमनाभव है।
    • बाप की याद में रहने से ही परिस्तानी बनेंगे।
    • भारत परिस्तान था और खण्ड परिस्तान नहीं बनते हैं।
    • यह है माया रावण का पाम्प।
    • यह थोड़ा समय चलने वाला है।
    • यह है झूठा शो।
    • झूठी माया, झूठी काया है ना।
    • यह पिछाड़ी का भभका है।
    • इनको देखकर समझते हैं, स्वर्ग तो अभी है, पहले नर्क था।
    • बड़े-बड़े मकान बनाते रहते हैं।
    • यह 100 वर्ष का शो है।
    • टेलीफोन, बिजली, एरोप्लेन आदि यह सब 100 वर्ष के अन्दर बनते हैं।
    • कितना शो है इसलिए समझते हैं स्वर्ग तो अभी है।
  • देहली पुरानी क्या थी?
    • अभी नई देहली कैसे अच्छी बनी है।
    • नाम ही रखा है न्यु देहली।
    • बापू जी चाहते थे नई दुनिया रामराज्य हो, परिस्तान हो।
    • यह तो टैम्परेरी पॉम्प है।
  • कितने बड़े-बड़े मकान, फाउन्टेन आदि बनाते हैं, इनको आर्टीफीशियल स्वर्ग कहा जाता है, अल्पकाल के लिए।
    • तुम जानते हो इनका नाम कोई स्वर्ग नहीं है।
    • इनका नाम नर्क है।
    • नर्क का भी एक शो है।
    • यह है अल्पकाल का शो।
    • यह अभी गया कि गया।
  • अब बाप बच्चों को कहते हैं - एक तो शान्तिधाम को याद करो।
    • सब मनुष्य मात्र शान्ति को ढूँढ़ते रहते हैं, कहाँ से शान्ति मिलेगी?
    • अब यह सवाल तो सारी दुनिया का है कि दुनिया में शान्ति कैसे हो?
    • मनुष्यों को यह पता नहीं कि हम सब वास्तव में शान्तिधाम के रहने वाले हैं।
  • हम आत्मायें शान्तिधाम में शान्त रहती हैं फिर यहाँ आती हैं, पार्ट बजाने।
    • सो भी तुम बच्चों को मालूम है।
    • अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो सुखधाम जाने वाया शान्तिधाम।
    • हर एक की बुद्धि में है हम आत्मायें अभी जायेंगी अपने घर, शान्तिधाम।
    • यहाँ तो शान्ति की बात हो नहीं सकती।
    • यह है ही दु:खधाम।
  • सतयुग पावन दुनिया, कलियुग है पतित दुनिया।
    • इन बातों की समझ अभी तुम बच्चों को आई है।
    • दुनिया वाले तो कुछ भी नहीं जानते हैं।
    • तुम्हारी बुद्धि में आया है - बेहद का बाप हमको सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं।
    • फिर कैसे धर्म स्थापक आकर धर्म स्थापन करते हैं।
    • अब सृष्टि में कितने अथाह मनुष्य हैं।
    • भारत में भी बहुत हैं, भारत जब स्वर्ग था तब बहुत साहूकार थे और कोई धर्म नहीं था।
    • तुम बच्चों को रोज़ रिफ्रेश किया जाता है।
    • बाप और वर्से को याद करो।
    • भक्ति मार्ग में भी यह चला आता है।
  • हमेशा अंगुली दिखाते हैं कि परमात्मा को याद करो।
    • परमात्मा अथवा अल्लाह वहाँ है।
    • परन्तु सिर्फ ऐसे ही याद करने से कुछ होता थोड़ेही है।
    • उनको यह भी पता नहीं है कि याद से क्या फायदा होगा!
    • उनके साथ हमारा क्या सम्बन्ध है?
      • जानते ही नहीं।
    • दु:ख के समय पुकारते हैं - हे राम... आत्मा याद करती है।
    • परन्तु उनको यह पता नहीं है कि सुख-शान्ति किसको कहा जाता है।
    • तुम्हारी बुद्धि में आता है कि हम सब एक बाप की सन्तान हैं तो फिर दु:ख क्यों होना चाहिए?
    • बेहद के बाप से सदा सुख का वर्सा मिलना चाहिए।
    • यह भी चित्र में क्लीयर है।
  • भगवान है ही स्वर्ग की स्थापना करने वाला, हेविनली गॉड फादर।
    • वह आते भी भारत में ही हैं।
    • परन्तु यह कोई समझते नहीं हैं।
    • देवी देवता धर्म की स्थापना जरूर संगम पर ही होगी, सतयुग में कैसे होगी!
    • परन्तु यह बातें दूसरे धर्म वाले जानते नहीं।
    • यह तो बाप ही नॉलेजफुल है, समझाते हैं - आदि सनातन देवी देवता धर्म कैसे स्थापन हुआ।
    • सतयुग की आयु लाखों वर्ष कहने से बहुत दूर कर देते हैं।
  • तुम बच्चों को चित्रों पर ही समझाना है।
    • भारत में इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
    • इन्होंने कैसे, कब यह राज्य पाया, यह नहीं जानते।
    • सिर्फ कहते हैं - यह सतयुग के मालिक थे।
    • उनके आगे जाकर भीख माँगते हैं तो अल्पकाल के लिए कुछ न कुछ मिल जाता है।
    • कोई दान-पुण्य करते हैं, उनको भी अल्पकाल के लिए फल मिल जाता है।
    • गरीब पंचायत के मुखी को भी इतनी ही खुशी रहती है, जितनी साहूकार मुखी को।
    • गरीब भी अपने को सुखी समझते हैं।
      • बॉम्बे में देखो, गरीब लोग कैसे-कैसे स्थानों पर रहते हैं।
    • तुम बच्चे अभी समझते हो - भल करोड़पति हैं परन्तु कितने दु:खी हैं।
  • तुम कहेंगे, हमारे जैसा खुशनसीब और कोई नहीं।
    • हम डायरेक्ट बाप के बने हैं, जिससे सद्गति का वर्सा मिलता है।
    • बड़े-बड़े आदमी कभी भी ऊंच पद पा न सकें।
    • जो गरीब हैं, वह साहूकार बन जाते हैं।
    • पढ़ते तुम हो, वह तो अनपढ़ हैं।
    • करके थोड़ा पढ़ेंगे भी तो भी बाप की याद में रह नहीं सकते।
    • अन्त में तुमको सिवाए बाप के और कुछ भी याद नहीं रहना है।
    • जानते हो यह सब कब्रिस्तान होना है।
    • बुद्धि में रहना चाहिए यह जो हम धन्धा आदि करते हैं, थोड़े समय के लिए है।
    • धनवान लोग धर्मशालायें आदि बनाते हैं।
      • वह कोई धन्धे के लिए नहीं बनाते हैं।
    • जहाँ तीर्थ वहाँ धर्मशालायें नहीं हो तो कहाँ रहें, इसलिए साहूकार लोग धर्मशालायें बनाते हैं।
    • ऐसे नहीं कि व्यापारी लोग आकर व्यापार करें।
    • धर्मशाला तीर्थ स्थानों पर बनाई जाती हैं।
  • अब तुम्हारा सेन्टर बड़े ते बड़ा तीर्थ है।
    • तुम्हारे सेन्टर्स जहाँ-जहाँ हैं वे बड़े से बड़े तीर्थ हैं, जहाँ से मनुष्य को सुख-शान्ति मिलती है।
    • तुम्हारी यह गीता पाठशाला बड़ी है।
    • यह सोर्स आफ इनकम है, इससे तुम्हारी बहुत आमदनी होती है।
    • तुम बच्चों के लिए यह भी धर्मशाला है।
    • बड़े से बड़ा तीर्थ है।
    • तुम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेते हो।
    • इस जैसा बड़े से बड़ा तीर्थ कोई होता नहीं।
    • उन तीर्थो पर जाने से तो तुमको कुछ भी मिलता नहीं।
      • यह भी तुम समझते हो।
  • भक्त लोग बड़े प्रेम से मन्दिर आदि में चरणामृत लेते हैं।
    • समझते हैं उनसे हमारा हृदय पवित्र हो जायेगा।
    • परन्तु वह तो पानी है।
    • यहाँ तो बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो वर्सा मिलेगा।
    • अभी बेहद के बाप से तुमको अविनाशी ज्ञान रत्नों का खज़ाना मिलता है।
    • अक्सर करके शंकर के पास जाते हैं, समझते हैं अमरनाथ ने पार्वती को कथा सुनाई, तब कहते हैं भर दे झोली... तुम अविनाशी ज्ञान रत्नों से झोली भरते हो।
    • बाकी अमरनाथ कोई एक को थोड़ेही बैठकर कथा सुनायेगा।
    • जरूर बहुत होंगे और वह भी मृत्युलोक में ही होंगे।
    • सूक्ष्मवतन में तो कथा सुनाने की दरकार ही नहीं।
    • अनेक तीर्थ बनाये हैं।
    • साधू-सन्त, महात्मा आदि ढेर जाते हैं।
    • अमरनाथ पर लाखों आदमी जाते हैं।
    • कुम्भ के मेले पर गंगा स्नान करने सबसे जास्ती जाते हैं।
    • समझते हैं, हम पावन बनेंगे।
    • वास्तव में कुम्भ का मेला यह है।
    • वह मेले तो जन्म-जन्मान्तर करते आये।
  • परन्तु बाप कहते हैं - इससे वापिस अपने घर कोई भी जा नहीं सकते क्योंकि जब आत्मा पवित्र बने तब जा सके।
    • परन्तु अपवित्र होने के कारण सबके पंख टूटे हुए हैं।
    • आत्मा को पंख मिले हैं, योग में रहने से आत्मा सबसे तीखी उड़ती है।
    • कोई का हिसाब-किताब लन्दन में, अमेरिका में होगा तो झट उड़ेंगे।
    • वहाँ सेकण्ड में पहुँच जाते हैं।
    • लेकिन मुक्तिधाम में तो
      • जब कर्मातीत हो तब जा सकें, तब तक यहाँ ही जन्म-मरण में आते हैं।
    • जैसे ड्रामा टिक-टिक हो चलता है।
    • आत्मा भी ऐसे है, टिक हुई यह गई।
    • इन जैसी तीखी और कोई चीज़ होती नहीं।
    • ढेर की ढेर सब आत्मायें मूलवतन में जाने वाली हैं।
    • आत्मा को कहाँ का कहाँ पहुँचने में देरी नहीं लगती है।
    • मनुष्य यह बातें समझते नहीं।
  • तुम बच्चों की बुद्धि में आता है कि नई दुनिया में जरूर थोड़ी आत्मायें होंगी और वहाँ बहुत सुखी होंगी।
    • वही आत्मायें अब 84 जन्म भोग बहुत दु:खी हुई हैं।
    • तुमको सारे चक्र का मालूम पड़ा है।
    • तुम्हारी बुद्धि चलती है और कोई मनुष्य मात्र की बुद्धि नहीं चलती।
    • प्रजापिता ब्रह्मा भी गाया हुआ है।
    • कल्प पहले भी तुम ऐसे ही ब्रह्माकुमार-कुमारी बने थे।
    • तुम जानते हो कि हम प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे हैं।
    • हमारे द्वारा बाबा स्वर्ग की स्थापना करा रहे हैं।
    • जब नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार लायक बन जायेंगे तो फिर पुरानी दुनिया का विनाश होगा।
    • त्रिमूर्ति भी यहाँ ही गाया हुआ है।
    • त्रिमूर्ति का चित्र भी रखते हैं।
    • उसमें शिव को दिखाते नहीं।
  • कहा भी जाता है - ब्रह्मा द्वारा स्थापना, कौन कराते हैं?
    • शिवबाबा।
    • विष्णु द्वारा पालना।
    • तुम ब्राह्मण अभी लायक बन रहे हो, देवता बनने के लिए।
    • अभी तुम वह पार्ट बजा रहे हो।
    • कल्प के बाद फिर बजायेंगे।
    • तुम पवित्र बनते हो।
    • कहते हो - बाबा का फरमान है काम रूपी शत्रु को जीतो, मामेकम् याद करो।
    • बहुत सहज है।
  • भक्ति मार्ग में तुम बच्चों ने बहुत दु:ख देखे हैं।
    • करके थोड़ा सुख है तो भी अल्पकाल के लिए।
    • भक्ति में साक्षात्कार होता है।
    • सो भी अल्पकाल के लिए तुम्हारी आश पूरी होती है, यह साक्षात्कार होता है - वह भी मैं कराता हूँ।
    • ड्रामा में नूँध है।
    • जो पास्ट हुआ सेकेण्ड बाई सेकेण्ड, ड्रामा शूट किया हुआ है।
    • ऐसे नहीं कहते हैं - अब शूट हुआ।
    • नही, यह तो अनादि बना बनाया ड्रामा है।
    • जितने भी एक्टर्स हैं - सबका पार्ट अविनाशी है।
    • मोक्ष को कोई नहीं पाते हैं।
    • संन्यासी लोग कहते हैं - हम लीन हो जाते हैं।
  • बाप समझाते हैं तुम अविनाशी आत्मा हो।
    • आत्मा बिन्दी है, इतनी छोटी सी बिन्दी में 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है।
    • यह चक्र चलता ही रहता है।
    • जो पहले-पहले पार्ट बजाने आते हैं, वही 84 जन्म लेते हैं।
    • सब तो ले न सकें।
    • तुम्हारे सिवाए और कोई की बुद्धि में यह नॉलेज नहीं है।
  • ज्ञान का सागर एक ही बाप है।
    • तुम जानते हो हम बाप से वर्सा ले रहे हैं।
    • बाप हमको पतित से पावन बनाते हैं।
    • सुख और शान्ति का वर्सा देते हैं।
    • सतयुग में दु:ख का नाम-निशान नहीं होता।
    • बाप कहते हैं - आयुश्वान भव, धनवान भव... निवृत्ति मार्ग वाले ऐसी आशीर्वाद दे न सकें।
    • तुम बच्चों को बाप से वर्सा मिल रहा है।
    • सतयुग त्रेता है सुखधाम।
    • फिर दु:ख कैसे होता है, यह भी कोई नहीं जानते।
  • देवतायें वाम मार्ग में कैसे जाते हैं, वह निशानियाँ हैं।
    • जगन्नाथ पुरी में देवताओं के चित्र, ताज आदि पहने हुए दिखाते हैं फिर गन्दे चित्र भी बनाये हैं इसलिए उनकी मूर्ति भी काली रखी है, जिससे सिद्ध होता है देवतायें वाम मार्ग में जाते हैं तो अन्त में बिल्कुल काले बन पड़ते हैं।
    • अभी तुम जानते हो, भारत कितना सुन्दर था फिर तमोप्रधान बनना ही है - ड्रामा प्लैन अनुसार।
    • अभी संगम पर तुमको यह नॉलेज है। बाप है नॉलेजफुल।
    • तुम्हारा एक ही बाप, टीचर, गुरू तीनों है।
    • यह सदैव बुद्धि में रहे, शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं।
    • यह बेहद की पढ़ाई है, जिससे तुम नॉलेजफुल बन गये हो।
    • तुम सब कुछ जानते हो।
    • वह कहते हैं - सर्वव्यापी है, तुम कहते हो वह पतित-पावन है।
    • कितना रात-दिन का फ़र्क है।
  • अभी तुम मास्टर नॉलेजफुल बने हो, नम्बरवार।
    • जो बाप के पास है वो तुमको सिखाते हैं।
    • तुम भी सबको यह बताते हो, बाप को याद करो तो 21 जन्मों के लिए वर्सा मिलेगा।
  • अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) स्वयं रिफ्रेश रहकर औरों को रिफ्रेश करने के लिए बाप और वर्से की याद में रहना है और सबको याद दिलाना है।
  • 2) इस पुरानी दुनिया से, इस कब्रिस्तान से दिल नहीं लगानी है।
    • शान्तिधाम, सुखधाम को याद करना है।
    • स्वयं को देवता बनने के लायक बनाना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • नशे और निशाने की स्मृति से सर्व कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाले ताज व तख्तनशीन भव
  • संगमयुग पर बापदादा द्वारा सभी बच्चों को ताज और तख्त प्राप्त होता है।
  • प्योरिटी का भी ताज है तो जिम्मेवारियों का भी ताज है, अकाल तख्त भी है तो दिलतख्तनशीन भी हो।
  • जब ऐसे डबल ताज और तख्तनशीन बनते हो तो नशा और निशाना स्वत: याद रहता है।
  • फिर यह कर्मेन्द्रियां जी हजूर करती हैं।
  • जो ताज व तख्त छोड़ देते हैं उनका आर्डर कोई भी कारोबारी नहीं मानते।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • कमजोर संकल्प ही प्रसन्नचित के बजाए प्रश्नचित बना देते हैं।