29-05-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति

"बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - जैसे बाबा प्यार का सागर है, उनके जैसा प्यार दुनिया में कोई कर नहीं सकता, ऐसे तुम बच्चे भी बाप समान बनो, किसी को रंज (नाराज़) मत करो''

प्रश्नः-

किस प्रकार के ख्यालात (विचार) चलते रहें तो खुशी का पारा चढ़ा रहेगा?

उत्तर:-

अभी हम ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भर रहे हैं फिर यह खानियां आदि सब भरपूर हो जायेंगी।

वहाँ (सतयुग में) हम सोने के महल बनायेंगे।

2- हमारा यह ब्राह्मण कुल उत्तम कुल है, हम सच्ची-सच्ची सत्य नारायण की कथा, अमरकथा सुनते और सुनाते हैं... ऐसे ऐसे ख्यालात चलते रहें तो खुशी का पारा चढ़ा रहेगा।

 

  • ओम् शान्ति।
  • बच्चे बाप की याद में बैठे हैं, यह श्रीमत अर्थात् श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत मिलती है।
    • याद की यात्रा बहुत मीठी है।
    • बच्चे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हैं कि जितना बाप को याद करेंगे उतना बाबा स्वीट लगेगा।
      • सैक्रीन है ना।
  • एक बाप ही प्यार करते हैं बाकी तो सब मार देते हैं।
    • दुनिया सारी एक दो को ठुकराती है।
    • बाप प्यार करते हैं, उनको सिर्फ तुम बच्चों ने जाना है।
  • बाप कहते हैं - मैं जो हूँ, जैसा हूँ, कितना बड़ा हूँ, बताओ हमारा बाप कितना बड़ा है?
    • तो कहते हैं बिन्दी है और तो कोई जानते नहीं।
    • बच्चे भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं।
    • कहते हैं भक्ति मार्ग में तो बड़े-बड़े चित्रों की पूजा करते थे।
    • अब बिन्दी को कैसे याद करें?
    • बिन्दी, बिन्दी को ही याद करेगी ना।
    • आत्मा जानती है हम बिन्दी हैं।
    • हमारा बाप भी ऐसे है।
  • आत्मा ही प्रेजीडेन्ट है, आत्मा ही नौकर है।
    • पार्ट आत्मा ही बजाती है।
  • बाप है सबसे स्वीट।
    • सब याद करते हैं हे पतित-पावन, दु:ख-हर्ता सुख-कर्ता आओ।
    • अब तुम बच्चों को यह निश्चय है हम जिसको बिन्दी कहते हैं, वह बहुत सूक्ष्म है परन्तु महिमा कितनी भारी है।
    • भल महिमा गाते भी हैं ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर है, परन्तु समझते नहीं कि वह कैसे आकर सुख देते हैं।
  • मीठे-मीठे चिल्ड्रेन हर एक समझ सकते हैं - कौन-कौन कितना श्रीमत पर चलते हैं।
    • श्रीमत मिलती है सर्विस करने की।
  • बहुत मनुष्य बीमार रोगी हैं, बहुत हैं जो हेल्दी भी हैं।
    • भारतवासी जानते हैं सतयुग में आयु बहुत बड़ी एवरेज 125-150 वर्ष की थी।
    • हर एक अपनी फुल आयु पूरी करते हैं।
    • यह तो बिल्कुल ही छी-छी दुनिया है जो बाकी थोड़ा समय ही है।
    • मनुष्य बड़ी-बड़ी धर्मशालायें आदि अभी तक बनाते रहते हैं।
    • जानते नहीं हैं, यह बाकी कितना समय होगी।
    • मन्दिर आदि बनाते हैं, लाखों रूपया खर्च करते हैं।
      • उनकी आयु बाकी कितना समय होगी?
    • तुम जानते हो यह तो टूटे कि टूटे।
    • तुमको बाबा मकान आदि बनाने के लिए कभी मना नहीं करते हैं।
  • तुम अपने ही घर में एक कमरे में हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी बनाओ।
    • बिगर कोई खर्चा, हेल्थ, वेल्थ, हैपीनेस 21 जन्मों के लिए लेना है, इस नॉलेज से।
    • यह भी समझाया है - तुमको सुख बहुत मिलता है।
    • जब तमोप्रधान बने तब जास्ती दु:ख होता है।
    • जितना-जितना तमोप्रधान बनते जायेंगे उतना दुनिया में दु:ख-अशान्ति बढ़ती जायेगी।
    • मनुष्य बहुत दु:खी होंगे।
    • फिर जय-जयकार हो जायेगी।
  • तुम बच्चों ने जो विनाश, दिव्य दृष्टि से देखा है सो फिर प्रैक्टिकल में देखना है।
    • स्थापना का साक्षात्कार भी बहुतों ने किया है।
      • छोटी बच्चियाँ बहुत साक्षात्कार करती थी।
      • ज्ञान कुछ भी नहीं था।
    • पुरानी दुनिया का विनाश भी जरूर होना है।
  • तुम बच्चे जानते हो - बाप ही आकर स्वर्ग का वर्सा देते हैं।
    • परन्तु बच्चों को फिर पुरूषार्थ करना है, ऊंच पद पाने का।
    • तुम बच्चों को बाप बैठ, यह सब बातें समझाते हैं, वह थोड़ेही जानते हैं कि बाकी थोड़ा समय है।
    • बाप कहते हैं - मैं हूँ दाता, मैं तुमको देने आया हूँ।
    • मनुष्य कहते हैं - पतित-पावन आओ, आकर हमको पावन बनाओ।
    • बाप कहते हैं - पहले तुम कितने समझदार थे, सतोप्रधान थे।
    • अभी तो तमोप्रधान बन पड़े हो।
    • तुम्हारी बुद्धि में भी अब आया है, आगे थोड़ेही समझते थे कि हम विश्व पर राज्य करते थे।
    • तुम विश्व के मालिक थे फिर जरूर बनेंगे।
    • हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होगी।
  • बाप ने समझाया है - 5000 वर्ष पहले मैं आया था, तुमको स्वर्ग का मालिक बनाया था।
    • फिर तुम 84 जन्मों की सीढ़ी उतरते हो।
    • यह विस्तार कोई भी शास्त्र में नहीं है।
    • शिवबाबा ने कोई शास्त्र आदि पढ़ा है क्या?
      • उनको तो ज्ञान की अथॉरिटी कहा जाता है।
    • वो लोग भी शास्त्र आदि पढ़कर शास्त्रों की अथॉरिटी बनते हैं।
  • वह भी तो गाते हैं - पतित-पावन आओ।
    • गंगा स्नान करने जाते हैं।
      • वास्तव में यह भक्ति है ही गृहस्थियों के लिए।
    • बाप बैठ समझाते हैं, उनको भी पता नहीं कि सद्गति दाता कौन है।
    • बाप समझाते हैं - तुम मुझे बुलाते भी हो, हे पतित-पावन आओ।
    • मैं तुमको पावन बनाता हूँ।
  • मैं तुमको पढ़ाने के लिए आता हूँ, ऐसे नहीं कि हम पर कृपा करो।
    • मैं तो टीचर हूँ, तुम कृपा आदि क्यों माँगते हो?
    • आशीर्वाद तो अनेक जन्म लेते आये हो।
    • अब आकर माँ-बाप की मिलकियत का मालिक बनो और आशीर्वाद क्या करेंगे!
    • बच्चा पैदा हुआ और बाप की मिलकियत का मालिक बना।
      • लौकिक बाप को कहते हैं, कि कृपा करो।
        • यहाँ तो कृपा की बात नहीं है।
    • सिर्फ बाप को याद करना है।
  • यह भी किसको पता नहीं है कि बाबा बिन्दू है।
    • अभी तुमको बाप ने बताया है, सभी कहते भी हैं परमपिता परमात्मा, गॉड फादर, सुप्रीम सोल।
    • तो परम आत्मा ठहरे ना।
    • वह है सुप्रीम।
    • बाकी सब आत्मायें हैं ना।
    • सुप्रीम बाप आकर आप समान बनाते हैं और कुछ नहीं है।
    • कोई की बुद्धि में होगा क्या कि बेहद का बाप जो स्वर्ग का रचयिता है, वह आकर स्वर्ग का मालिक बनाते हैं!
    • तुम अभी जानते हो, कृष्ण के हाथ में स्वर्ग का गोला है।
  • गर्भ से बच्चा बाहर निकलता है तब से आयु शुरू होती है।
    • श्रीकृष्ण तो पूरे 84 जन्म लेते हैं।
    • गर्भ से बाहर आया, उस दिन से 84 जन्म गिनेंगे।
  • लक्ष्मी-नारायण को तो बड़ा होने में 30-35 वर्ष लगे ना।
    • तो वह 30-35 वर्ष 5 हजार से कम करना पड़े।
    • शिवबाबा का तो गिनती नहीं कर सकते।
    • शिवबाबा कब आये, टाइम दे नहीं सकते।
  • शुरू से साक्षात्कार होते थे।
    • मुसलमान लोग भी बगीचा आदि देखते थे।
    • यह नौधा भक्ति तो कोई ने नहीं की।
    • घर बैठे आपेही ध्यान में जाते रहते थे।
    • वह तो कितनी नौधा भक्ति करते हैं।
    • तो बाप बैठ सम्मुख समझाते हैं।
  • बाबा दूरदेश से आया है, यह बच्चे जानते हैं।
    • इसमें प्रवेश कर हमको पढ़ाते हैं।
    • लेकिन फिर बाहर जाने से नशा कम हो जाता है।
    • याद रहे तो खुशी का पारा भी चढा रहे और कर्मातीत अवस्था हो जाए, परन्तु उसमें टाइम चाहिए।
  • अब देखो, श्रीकृष्ण की आत्मा को अन्तिम जन्म में फुल ज्ञान है फिर गर्भ से बाहर निकलेंगे, पाई का भी ज्ञान नहीं होगा।
    • बाप आकर समझाते हैं - कृष्ण ने कोई मुरली बजाई नहीं।
    • वह तो ज्ञान जानते ही नहीं।
    • लक्ष्मी-नारायण ही नहीं जानते तो फिर ऋषि, मुनि, संन्यासी आदि कैसे जानेंगे।
    • विश्व के मालिक लक्ष्मी-नारायण ने ही नहीं जाना तो फिर यह संन्यासी लोग कैसे जानेंगे।
    • कहते हैं श्रीकृष्ण सागर में पीपल के पत्ते पर आया, यह किया... यह सब कहानियाँ हैं, जो बैठ लिखी हैं।
      • कहते हैं नदी में पैर डाला तो वह नीचे चली गई, विचार करो - मनुष्य क्या-क्या बातें बना सकते हैं।
  • अब बाप समझाते हैं, कोई भी उल्टी-सुल्टी बातों पर कभी विश्वास नहीं करना।
    • शास्त्र आदि कितने मनुष्य पढ़ते हैं।
    • बाप कहते हैं - पढ़ा हुआ सब भूल जाओ।
  • इस देह को भी भूल जाओ।
    • आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेकर पार्ट बजाती है।
    • भिन्न-भिन्न नाम, रूप, देश चोला पहनकर।
    • अब बाप कहते हैं -यह छी-छी वस्त्र हैं।
    • आत्मा और शरीर दोनों पतित हैं।
    • आत्मा को ही श्याम और सुन्दर कहा जाता है।
    • आत्मा पवित्र थी तो सुन्दर थी फिर काम चिता पर बैठने से काले बने हैं।
    • अब फिर बाप ज्ञान चिता पर बिठाते हैं।
  • पतित-पावन बाप कहते हैं -मुझे याद करो तो यह खाद ही निकल जायेगी।
    • आत्मा में ही खाद पड़ती है।
  • कलियुग अन्त में तुम गरीब हो।
    • वहाँ सतयुग में फिर तुम सोने के महल बनायेंगे।
    • वण्डर है, यहाँ हीरों का देखो कितना मान है।
    • वहाँ तो पत्थरों मिसल होते हैं।
    • अभी तुम बाप से ज्ञान रत्नों की झोली भर रहे हो।
  • लिखा हुआ है सागर से रत्नों की थालियाँ भर ले आते हैं।
      • सागर से जितना भी चाहिए उतना लो।
    • खानियाँ ही भरतू हो जाती हैं।
    • तुमने साक्षात्कार किया है।
  • माया-मच्छन्दर का भी खेल दिखाते हैं।
    • उसने देखा सोने की ईटें पड़ी हैं, ले जाता हूँ।
    • नीचे आया तो कुछ था नहीं।
    • वहाँ तो सोने की ईटों के महल बनायेंगे।
    • ऐसे-ऐसे ख्यालात आने चाहिए तो खुशी का पारा चढ़े।
      • बाप का परिचय देना है।
  • शिवबाबा 5 हजार वर्ष पहले भी आया था, यह किसको पता नहीं है।
    • तुम जानते हो 5 हजार वर्ष पहले आकर तुमको राजयोग सिखाया था, कल्प-कल्प तुमको ही सिखायेंगे।
    • जो-जो आकर ब्राह्मण बनेंगे वह फिर देवता बनेंगे।
    • विराट रूप भी बनाते हैं।
    • उसमें ब्राह्मणों की चोटी गुम कर दी हैं।
    • ब्राह्मणों का कुल बहुत उत्तम गाया जाता है, वह है जिस्मानी।
    • तुम हो रूहानी।
  • तुम सच्ची-सच्ची कथा सुनाते हो।
    • यही सत्य नारायण की कथा, अमरकथा है।
    • तुमको अमरकथा सुनाए अमर बना रहे हैं।
  • यह मृत्युलोक खत्म होना है।
    • शिवबाबा कहते हैं - मैं तुमको लेने आया हूँ।
    • कितनी ढेर आत्मायें होंगी।
    • आत्मा वापस घर में जाती है तो कोई आवाज थोड़ेही होता है।
      • मधुमक्खियों का झुण्ड जाता है तो आवाज कितना होता है।
        • रानी के पिछाड़ी मधुमक्खियाँ सब भागती हैं।
        • उनकी आपस में कितनी एकता है।
  • भ्रमरी का भी मिसाल यहाँ का है।
      • तुम मनुष्य से देवता बना देते हो।
      • पतितों को तुम ज्ञान की भूँ-भूँ करते हो तो पावन विश्व का मालिक बन जाते हैं।
    • तुम्हारा है प्रवृत्ति मार्ग, उसमें भी मैजारिटी माताओं की है इसलिए वन्दे मातरम् कहा जाता है।
    • ब्रह्माकुमारी वह जो बाप द्वारा 21 जन्म का वर्सा दिलाती है।
    • बाप सदा सुख का वर्सा देते हैं।
  • जो सर्विस करेंगे, लिखेंगे-पढ़ेंगे होंगे नवाब...।
    • राजा बनना अच्छा वा नौकर बनना अच्छा।
    • पिछाड़ी के समय तुमको सब मालूम पड़ जायेगा।
    • हम क्या बनेंगे?
    • फिर पछतायेंगे।
    • हम श्रीमत पर क्यों नहीं चले!
    • बाप कहते हैं - फालो करो।
  • ऐसे भी नहीं कोई एक कमरा दे देते हैं, सेन्टर के लिए, खुद मीट आदि खाते रहते हैं।
    • वह पुण्य आत्मा, वह पाप आत्मा, फिर आश्रम नहीं रहेगा।
    • घर में स्वर्ग बनाते हैं तो खुद भी स्वर्ग में होने चाहिए ना।
      • सिर्फ आशीर्वाद पर नहीं ठहरना है।
    • बाप को याद करना है।
    • पवित्र बनाकर ही साथ ले जायेंगे।
    • तुमको तो बहुत खुशी रहनी चाहिए, कितनी भारी लाटरी मिलती है।
  • बाप को जितना याद करेंगे, उतना विकर्म विनाश होंगे।
    • बाप जितना प्यार, दुनिया में कोई कर नहीं सकता।
    • उनको कहा ही जाता है - प्यार का सागर।
    • तुम भी ऐसे बनो।
    • अगर किसको दु:ख दिया, रंज (नाराज) किया तो रंज होकर मरेंगे।
    • यह कोई बाबा श्राप नहीं देते हैं, समझाते हैं।
    • सुख दो तो सुखी होंगे, सबको प्यार करो।
    • बाबा भी प्यार का सागर है।
  • अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) किसी भी उल्टी-सुल्टी बात पर विश्वास नहीं करना है।
    • जो भी उल्टा पढ़ा है उसे भूल अशरीरी बनने का अभ्यास करना है।
  • 2) सिर्फ आशीर्वाद पर नहीं चलना है।
    • स्वयं को पवित्र बनाना है।
    • बाप को हर कदम में फालो करना है, किसी को भी दु:ख नहीं देना है।
    • नाराज़ नहीं करना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • हर संकल्प और कर्म में सिद्धि अर्थात् सफलता प्राप्त करने वाले सम्पूर्ण मूर्त भव
  • संकल्पों की सिद्धि तब प्राप्त होगी जब समर्थ संकल्पों की रचना करेंगे।
  • जो अधिक संकल्पों की रचना करते हैं वह उनकी पालना नहीं कर पाते इसलिए जितनी रचना ज्यादा उतनी शक्तिहीन होती है।
  • तो पहले व्यर्थ रचना बन्द करो तब सफलता प्राप्त होगी और कर्मों में सफलता प्राप्त करने की युक्ति है - कर्म करने से पहले आदि-मध्य और अन्त को जानकर फिर कर्म करो।
  • इससे ही सम्पूर्ण मूर्त बन जायेंगे।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • समय पर दु:ख और धोखे से बचकर सफल होने वाला ही ज्ञानी (समझदार) है।