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ओम् शान्ति।
- यह ब्रह्मा मुख वंशावली, ब्राह्मण कुल भूषण प्रतिज्ञा करते हैं क्योंकि उनकी प्रीति एक बाप से जुटी हुई है।
- तुम जानते हो - यह विनाश का समय है। बाप बच्चों को समझाते हैं कि विनाश तो होना ही है।
- विनाश काले जिनकी प्रीत बाप के साथ होगी, वही विजय पायेंगे अर्थात् सतयुग के मालिक बनेंगे।
- शिवबाबा ने समझाया है - विश्व का मालिक तो राजा भी बनते हैं तो प्रजा भी बनती है, परन्तु पोजीशन में बहुत फ़र्क है।
- जितना बाप से प्रीत रखेंगे, याद में रहेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
- बाबा ने समझाया है - बाप की याद से ही तुम्हारे विकर्मों का बोझा भस्म होगा।
- तुम लिख सकते हो कि विनाश काले विपरीत बुद्धि... यह लिखने में कोई डर की बात ही नहीं है।
- बाप कहते हैं - मैं खुद कहता हूँ कि उनका विनाश होगा और प्रीत बुद्धि वालों की विजय होगी।
- बाबा बिल्कुल क्लीयर कह देते हैं।
- इस दुनिया में प्रीत तो कोई की है नहीं।
- बाबा कहते - बच्चे, परमात्मा और श्रीकृष्ण की महिमा अलग-अलग लिखो तो सिद्ध हो जाए कि गीता का भगवान कौन?
- दूसरा बाबा समझाते हैं - ज्ञान का सागर, पतित-पावन परमपिता या पानी की नदियाँ?
- ज्ञान गंगा वा पानी की गंगा?
- यह तो बहुत सहज है।
- दूसरी बात - जब प्रदर्शनी करते हो तो सबसे पहले निमन्त्रण देना चाहिए, गीता पाठशाला वालों को।
- वह तो ढेर हैं।
- उन्हों को खास निमन्त्रण देना चाहिए।
- जो श्रीमत भगवत गीता का अभ्यास करते हैं, उनको पहले निमन्त्रण देना चाहिए क्योंकि वही भूले हुए हैं और सभी को भुलाते रहते हैं।
- उनको बुलाना चाहिए कि अब आकर जज करो फिर जो समझ में आये सो करना।
- तो मनुष्य भी समझें - यह गीता वालों को बुलाते हैं।
- शायद इन्हों का गीता पर ही प्रचार है।
- गीता से ही स्वर्ग की स्थापना हुई है।
- गीता की बहुत महिमा है परन्तु भक्ति मार्ग की गीता नहीं।
- बाप कहते हैं - मैं तुम्हें सत्य ही सत्य बताता हूँ।
- मनुष्य जो अर्थ करते हैं वह बिल्कुल रांग हैं।
- कोई भी सत्य नहीं कहते, मैं ही सत्य बताता हूँ।
- परमात्मा को सर्वव्यापी कहना भी सत्य नहीं है, यह सब विनाश को प्राप्त होंगे और कल्प-कल्प होते भी हैं।
- तुमको पहली-पहली मुख्य बात यह समझानी है।
- बाप कहते हैं - यूरोपवासी यादवों की है विनाश काले विपरीत बुद्धि।
- विनाश के लिए अच्छी रीति तैयारियाँ कर रहे हैं परन्तु पत्थरबुद्धि समझ नहीं सकते हैं।
- तुम भी पत्थरबुद्धि थे, अब पारसबुद्धि बनना है।
- पारसबुद्धि थे
- फिर पत्थरबुद्धि कैसे बने हैं!
- यह भी वन्डर है।
- बाप को कहा ही जाता है नॉलेजफुल, मर्सीफुल।
- बाकी जो अपना ही कल्याण करने नहीं जानते, वह दूसरों का कल्याण कैसे करेंगे!
- जो नॉलेज ही धारण नहीं करते तो पद भी ऐसा पाते हैं, जो सर्विसएबुल हैं वही ऊंच पद पायेंगे।
- उनको ही बाप प्यार भी करते हैं।
- नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार होते ही हैं।
- कई तो यह भी समझते नहीं कि हमारी बाप से प्रीत नहीं है तो पद भी नहीं मिलेगा।
- चाहे सगे बनें वा सौतेले बनें, विनाश काले प्रीत बुद्धि नहीं होगी, बाप को फालो नहीं करेंगे तो जाकर कम पद पायेंगे।
- दैवीगुण भी चाहिए।
- कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए।
- बाप कहते हैं - मैं सत्य कहता हूँ, जो मेरे से प्रीत नहीं करते तो पद भी नहीं मिलेगा।
- कोशिश कर 21 जन्म का पूरा वर्सा लेना है।
- तो प्रदर्शनी, मेले पर पहले-पहले गीता पाठशाला वालों को निमन्त्रण देना है क्योंकि वो भक्त ठहरे ना।
- गीता-पाठी जरूर कृष्ण को याद करते होंगे परन्तु समझते कुछ नहीं हैं।
- कृष्ण ने मुरली बजाई, राधे फिर कहाँ गई।
- सरस्वती को बैन्जो दे दिया है, मुरली फिर कृष्ण को दे दी है।
- मनुष्य कहते हैं - हमको अल्लाह ने पैदा किया, परन्तु अल्लाह को जानते नहीं।
- भारत की ही बात है।
- भारत में ही देवताओं का राज्य था, उन्हों के चित्र मन्दिरों में पूजे जाते हैं।
- बाकी किंग्स आदि के स्टैच्यु तो बाहर लगा देते हैं, जिस पर पंछी आदि किचड़ा डालते रहते हैं।
- लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण आदि को कितना फर्स्टक्लास जगह पर बिठाते हैं।
- उन्हों को महाराजा-महारानी कहते हैं, किंग अंग्रेजी अक्षर है।
- कितना लाखों रूपया खर्च कर मन्दिर बनाते हैं क्योंकि वह महाराजा पवित्र थे।
- यथा राजा-रानी तथा प्रजा सब पूज्य हैं।
- तुम ही पूज्य फिर पुजारी बनते हो।
- तो पहली बात है, बाप को याद करो।
- बाप को याद करने का अभ्यास करने से धारणा होगी।
- एक के साथ प्रीत नहीं है तो फिर और और के साथ लग जाती है।
- ऐसी-ऐसी बच्चियाँ हैं, जो एक दो को इतना प्यार करती हैं जो शिवबाबा को भी इतना नहीं करती।
- शिवबाबा कहते हैं - तुमको बुद्धियोग मेरे साथ लगाना है या एक दो में आशिक-माशूक बन जाना है!
- फिर मेरे को बिल्कुल ही भूल जाते हैं।
- तुमको तो बुद्धियोग मेरे साथ जोड़ना है, इसमें मेहनत लगती है।
- बुद्धि टूटती ही नहीं है।
- शिवबाबा के बदले, दिन-रात एक दो को ही याद करते रहते हैं।
- बाबा नाम सुनाये तो ट्रेटर बन जाते हैं, फिर गाली देने में भी देरी नहीं करते।
- इस बाबा को गाली दी तो शिवबाबा भी झट सुन लेगा।
- ब्रह्मा से नहीं पढ़े तो शिवबाबा से पढ़ न सके।
- ब्रह्मा बिगर तो शिवबाबा भी सुन न सके, इसलिए कहते हैं साकार से जाकर पूछो।
- कई अच्छे-अच्छे बच्चे हैं जो साकार को मानते ही नहीं।
- समझते हैं - यह तो पुरूषार्थी हैं।
- पुरूषार्थी तो सब हैं परन्तु तुमको फालो तो माँ-बाप को ही करना है।
- कोई तो समझाने से समझ जाते हैं, कोई की तकदीर में नहीं है तो समझते नहीं।
- सर्विसएबुल बनते नहीं।
- परन्तु बुद्धि एक बाप से रखनी होती है।
- बहुत आजकल निकले हैं जो कहते हैं मेरे में शिवबाबा आते हैं, इसमें बड़ी सम्भाल चाहिए।
- माया की बहुत प्रवेशता होती है, जिनमें आगे श्री नारायण आदि आते थे, वह भी आज हैं नहीं।
- सिर्फ प्रवेशता से कुछ होता नहीं है।
- बाप कहते हैं - मामेकम् याद करो।
- बाकी मेरे में यह आता है, वह आता है... यह सब माया है।
- मेरी याद ही नहीं होगी तो प्राप्ति क्या होगी, जब तक बाप से सीधा योग नहीं रखेंगे तो पद कैसे पायेंगे, धारणा कैसे होगी।
- बाप कहते हैं - तुम मामेकम् याद करो।
- ब्रह्मा द्वारा ही मैं समझाता हूँ, ब्रह्मा द्वारा ही स्थापना हुई है।
- त्रिमूर्ति भी जरूर चाहिए।
- कोई तो ब्रह्मा का चित्र देख बिगड़ते हैं।
- कई फिर कृष्ण के 84 जन्म देख बिगड़ते हैं।
- चित्र फाड़ भी डालते हैं।
- अरे यह तो बाप ने चित्र बनवाये हैं।
- तो बाप बच्चों को समझाते हैं - भूलो मत, सिर्फ बाप को याद करते रहो।
- बांधेलियों को भी रड़ियाँ नहीं मारनी हैं।
- घर में बैठे बाप को याद करती रहो।
- बांधेलियों को तो और ही ऊंच पद मिल सकता है।
- तुम बच्चों को ज्ञान देने वाला है ही एक ज्ञान सागर।
- स्प्रीचुअल नॉलेज एक बाप के सिवाए और कोई में है नहीं।
- ज्ञान का सागर एक परमपिता परमात्मा ही है, उसको ही लिबरेटर कहा जाता है, इसमें डरने की क्या बात है।
- बाप बच्चों को समझाते हैं, बच्चों को फिर औरों को समझाना है।
- बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो सद्गति को पायेंगे।
- सतयुग में है राम-राज्य, कलियुग में नहीं है।
- सतयुग में तो एक ही राज्य है।
- यह सब बातें तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं, जिनकी बुद्धि में धारण होती हैं, जिनको धारणा नहीं होती है, विनाश काले विपरीत बुद्धि कहेंगे, पद पा नहीं सकेंगे।
- विनाश तो सबका होना है।
- यह अक्षर कम है क्या!
- शिवबाबा कहते हैं - विनाश काले प्रीत बुद्धि बनो।
- यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है, इसमें अगर तुम प्रीत नहीं रखते हो तो पद भी नहीं मिलेगा।
- सच्चे दिल पर साहेब राज़ी होता है।
- दधीचि ऋषि मिसल
- सेवा में हड्डियाँ देनी हैं।
- कभी कोई पर ग्रहचारी बैठती है तो नशा ही उड़ जाता है फिर अनेक प्रकार के तूफान आते रहते हैं।
- मुख से कहते इससे तो लौकिक के पास चले जायें, यहाँ तो कोई मज़ा नहीं है।
- वहाँ तो नाटक, बाइसकोप आदि खूब हैं, जो इन बातों पर हिरे हुए हैं वह यहाँ ठहर न सकें, बड़ा मुश्किल है।
- हाँ, पुरूषार्थ से ऊंच पद भी पा सकते हैं, खुशी में रहना चाहिए।
- बाबा खुद कहते हैं - सुबह को उठकर नहीं बैठता हूँ तो मज़ा ही नहीं आता है।
- लेटे रहने से कभी-कभी झुटका आ जायेगा।
- उठकर बैठने से अच्छी प्वाइंट्स निकलती हैं, बड़ा मजा आता है।
- अभी बाकी थोड़े दिन हैं, हम विश्व की बादशाही ले रहे हैं, बाप से।
- यह बैठ याद करें तो भी खुशी का पारा चढ़े।
- सुबह को चिन्तन चलता है तो दिन को भी खुशी रहती है।
- अगर खुशी नहीं रहती तो जरूर बाप से प्रीत बुद्धि नहीं है।
- अमृतवेले एकान्त अच्छी होती है, जितना बाप को याद करेंगे उतना खुशी का पारा चढ़ेगा।
- इस पढ़ाई में ग्रहचारी बैठती है क्योंकि बाप को भूलते हैं।
- बाप से वर्सा लेना है तो मन्सा-वाचा-कर्मणा सर्विस करनी है।
- इस सर्विस में ही यह अन्तिम जन्म व्यतीत करना है।
- अगर और दुनियावी बातों में लग गये तो फिर यह सर्विस कब करेंगे!
- कल-कल करते मर जायेंगे।
- बाप आये ही हैं स्वर्ग में ले जाने के लिए।
- यहाँ तो लड़ाई में कितने मरते हैं, कितनों को दु:ख होता होगा।
- वहाँ तो लड़ाई आदि होगी नहीं।
- यह सब पिछाड़ी के हैं, सब खत्म होने हैं।
- निधनके ऐसे मरेंगे, धनी के जो होंगे वह राज्य भाग्य पायेंगे।
- प्रदर्शनी में भी समझाना है कि हम अपनी कमाई से, अपने ही तन-मन-धन से अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं।
- हम भीख नहीं माँगते हैं, जरूरत ही नहीं है।
- ढेर भाई-बहिन इकट्ठे होकर राजधानी स्थापन करते हैं।
- तुम करोड़ इकट्ठा कर अपना विनाश करते हो, हम पाई-पाई इकट्ठा कर विश्व का मालिक बनते हैं।
- कितनी वन्डरफुल बात है।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) अमृतवेले एकान्त में बैठ बाप को प्यार से याद करना है।
- दुनियावी बातों को छोड़ ईश्वरीय सेवा में लग जाना है।
- 2) बाप से सच्ची दिल रखनी है।
- आपस में एक दो के आशिक-माशूक नहीं बनना है।
- प्रीत एक बाप से जोड़नी है। देहधारियों से नहीं।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- स्वार्थ शब्द के अर्थ को जान सदा एकरस स्थिति में स्थित होने वाले सहज पुरुषार्थी भव
- आजकल एक दो में जो लगाव है वह स्नेह से नहीं लेकिन स्वार्थ से है।
- स्वार्थ के कारण लगाव है और लगाव के कारण न्यारे नहीं बन सकते इसलिए स्वार्थ शब्द के अर्थ में स्थित हो जाओ अर्थात् पहले स्व के रथ को स्वाहा करो।
- यह स्वार्थ गया तो न्यारे बन ही जायेंगे।
- इस एक शब्द के अर्थ को जानने से सदा एक के और एकरस बन जायेंगे, यही सहज पुरूषार्थ है।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- फरिश्ता रूप में रहने से कोई भी विघ्न अपना प्रभाव डाल नहीं सकता।
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