27-05-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति

"बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - अभी विनाश का समय बहुत समीप है इसलिए एक बाप से सच्ची प्रीत रखो, किसी देहधारी से नहीं''

प्रश्नः-

जिन बच्चों की सच्ची प्रीत एक बाप से होगी उनकी निशानियाँ क्या होंगी?

उत्तर:-

1- उनका बुद्धियोग किसी भी देहधारी के तरफ जा नहीं सकता। वह आपस में एक दो के आशिक - माशूक नहीं बनेंगे।

2- जिनकी सच्ची प्रीत है वह सदा विजयी बनते हैं। विजयी बनना अर्थात् सतयुग का महाराजा-महारानी बनना।

3- प्रीत बुद्धि सदा बाप के साथ सच्चे रहते हैं। कुछ भी छिपा नहीं सकते।

4- रोज़ अमृतवेले उठ प्यार से बाप को याद करेंगे।

5- दधीचि ऋषि की तरह सर्विस में हड्डियाँ देंगे।

6- उनकी बुद्धि दुनियावी बातों में भटक नहीं सकती।

गीत:- न वह हमसे जुदा होंगे...

 

गीत:- न वह हमसे जुदा होंगे...


  • ओम् शान्ति।
  • यह ब्रह्मा मुख वंशावली, ब्राह्मण कुल भूषण प्रतिज्ञा करते हैं क्योंकि उनकी प्रीति एक बाप से जुटी हुई है।
  • तुम जानते हो - यह विनाश का समय है। बाप बच्चों को समझाते हैं कि विनाश तो होना ही है।
    • विनाश काले जिनकी प्रीत बाप के साथ होगी, वही विजय पायेंगे अर्थात् सतयुग के मालिक बनेंगे।
  • शिवबाबा ने समझाया है - विश्व का मालिक तो राजा भी बनते हैं तो प्रजा भी बनती है, परन्तु पोजीशन में बहुत फ़र्क है।
    • जितना बाप से प्रीत रखेंगे, याद में रहेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
    • बाबा ने समझाया है - बाप की याद से ही तुम्हारे विकर्मों का बोझा भस्म होगा।
    • तुम लिख सकते हो कि विनाश काले विपरीत बुद्धि... यह लिखने में कोई डर की बात ही नहीं है।
    • बाप कहते हैं - मैं खुद कहता हूँ कि उनका विनाश होगा और प्रीत बुद्धि वालों की विजय होगी।
    • बाबा बिल्कुल क्लीयर कह देते हैं।
  • इस दुनिया में प्रीत तो कोई की है नहीं।
    • तुम्हारी ही प्रीत है।
  • बाबा कहते - बच्चे, परमात्मा और श्रीकृष्ण की महिमा अलग-अलग लिखो तो सिद्ध हो जाए कि गीता का भगवान कौन?
    • यह तो जरूरी है ना।
  • दूसरा बाबा समझाते हैं - ज्ञान का सागर, पतित-पावन परमपिता या पानी की नदियाँ?
    • ज्ञान गंगा वा पानी की गंगा?
    • यह तो बहुत सहज है।
  • दूसरी बात - जब प्रदर्शनी करते हो तो सबसे पहले निमन्त्रण देना चाहिए, गीता पाठशाला वालों को।
    • वह तो ढेर हैं।
    • उन्हों को खास निमन्त्रण देना चाहिए।
    • जो श्रीमत भगवत गीता का अभ्यास करते हैं, उनको पहले निमन्त्रण देना चाहिए क्योंकि वही भूले हुए हैं और सभी को भुलाते रहते हैं।
    • उनको बुलाना चाहिए कि अब आकर जज करो फिर जो समझ में आये सो करना।
    • तो मनुष्य भी समझें - यह गीता वालों को बुलाते हैं।
    • शायद इन्हों का गीता पर ही प्रचार है।
    • गीता से ही स्वर्ग की स्थापना हुई है।
    • गीता की बहुत महिमा है परन्तु भक्ति मार्ग की गीता नहीं।
    • बाप कहते हैं - मैं तुम्हें सत्य ही सत्य बताता हूँ।
    • मनुष्य जो अर्थ करते हैं वह बिल्कुल रांग हैं।
    • कोई भी सत्य नहीं कहते, मैं ही सत्य बताता हूँ।
    • परमात्मा को सर्वव्यापी कहना भी सत्य नहीं है, यह सब विनाश को प्राप्त होंगे और कल्प-कल्प होते भी हैं।
    • तुमको पहली-पहली मुख्य बात यह समझानी है।
  • बाप कहते हैं - यूरोपवासी यादवों की है विनाश काले विपरीत बुद्धि।
    • विनाश के लिए अच्छी रीति तैयारियाँ कर रहे हैं परन्तु पत्थरबुद्धि समझ नहीं सकते हैं।
    • तुम भी पत्थरबुद्धि थे, अब पारसबुद्धि बनना है।
    • पारसबुद्धि थे
      • फिर पत्थरबुद्धि कैसे बने हैं!
    • यह भी वन्डर है।
  • बाप को कहा ही जाता है नॉलेजफुल, मर्सीफुल।
    • बाकी जो अपना ही कल्याण करने नहीं जानते, वह दूसरों का कल्याण कैसे करेंगे!
    • जो नॉलेज ही धारण नहीं करते तो पद भी ऐसा पाते हैं, जो सर्विसएबुल हैं वही ऊंच पद पायेंगे।
    • उनको ही बाप प्यार भी करते हैं।
    • नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार होते ही हैं।
    • कई तो यह भी समझते नहीं कि हमारी बाप से प्रीत नहीं है तो पद भी नहीं मिलेगा।
    • चाहे सगे बनें वा सौतेले बनें, विनाश काले प्रीत बुद्धि नहीं होगी, बाप को फालो नहीं करेंगे तो जाकर कम पद पायेंगे।
  • दैवीगुण भी चाहिए।
    • कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए।
    • बाप कहते हैं - मैं सत्य कहता हूँ, जो मेरे से प्रीत नहीं करते तो पद भी नहीं मिलेगा।
    • कोशिश कर 21 जन्म का पूरा वर्सा लेना है।
  • तो प्रदर्शनी, मेले पर पहले-पहले गीता पाठशाला वालों को निमन्त्रण देना है क्योंकि वो भक्त ठहरे ना।
    • गीता-पाठी जरूर कृष्ण को याद करते होंगे परन्तु समझते कुछ नहीं हैं।
    • कृष्ण ने मुरली बजाई, राधे फिर कहाँ गई।
    • सरस्वती को बैन्जो दे दिया है, मुरली फिर कृष्ण को दे दी है।
    • मनुष्य कहते हैं - हमको अल्लाह ने पैदा किया, परन्तु अल्लाह को जानते नहीं।
    • भारत की ही बात है।
  • भारत में ही देवताओं का राज्य था, उन्हों के चित्र मन्दिरों में पूजे जाते हैं।
    • बाकी किंग्स आदि के स्टैच्यु तो बाहर लगा देते हैं, जिस पर पंछी आदि किचड़ा डालते रहते हैं।
    • लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण आदि को कितना फर्स्टक्लास जगह पर बिठाते हैं।
    • उन्हों को महाराजा-महारानी कहते हैं, किंग अंग्रेजी अक्षर है।
    • कितना लाखों रूपया खर्च कर मन्दिर बनाते हैं क्योंकि वह महाराजा पवित्र थे।
    • यथा राजा-रानी तथा प्रजा सब पूज्य हैं।
    • तुम ही पूज्य फिर पुजारी बनते हो।
  • तो पहली बात है, बाप को याद करो।
    • बाप को याद करने का अभ्यास करने से धारणा होगी।
    • एक के साथ प्रीत नहीं है तो फिर और और के साथ लग जाती है।
    • ऐसी-ऐसी बच्चियाँ हैं, जो एक दो को इतना प्यार करती हैं जो शिवबाबा को भी इतना नहीं करती।
    • शिवबाबा कहते हैं - तुमको बुद्धियोग मेरे साथ लगाना है या एक दो में आशिक-माशूक बन जाना है!
    • फिर मेरे को बिल्कुल ही भूल जाते हैं।
    • तुमको तो बुद्धियोग मेरे साथ जोड़ना है, इसमें मेहनत लगती है।
    • बुद्धि टूटती ही नहीं है।
    • शिवबाबा के बदले, दिन-रात एक दो को ही याद करते रहते हैं।
      • बाबा नाम सुनाये तो ट्रेटर बन जाते हैं, फिर गाली देने में भी देरी नहीं करते।
    • इस बाबा को गाली दी तो शिवबाबा भी झट सुन लेगा।
  • ब्रह्मा से नहीं पढ़े तो शिवबाबा से पढ़ न सके।
    • ब्रह्मा बिगर तो शिवबाबा भी सुन न सके, इसलिए कहते हैं साकार से जाकर पूछो।
    • कई अच्छे-अच्छे बच्चे हैं जो साकार को मानते ही नहीं।
    • समझते हैं - यह तो पुरूषार्थी हैं।
    • पुरूषार्थी तो सब हैं परन्तु तुमको फालो तो माँ-बाप को ही करना है।
  • कोई तो समझाने से समझ जाते हैं, कोई की तकदीर में नहीं है तो समझते नहीं।
    • सर्विसएबुल बनते नहीं।
    • परन्तु बुद्धि एक बाप से रखनी होती है।
  • बहुत आजकल निकले हैं जो कहते हैं मेरे में शिवबाबा आते हैं, इसमें बड़ी सम्भाल चाहिए।
    • माया की बहुत प्रवेशता होती है, जिनमें आगे श्री नारायण आदि आते थे, वह भी आज हैं नहीं।
    • सिर्फ प्रवेशता से कुछ होता नहीं है।
    • बाप कहते हैं - मामेकम् याद करो।
    • बाकी मेरे में यह आता है, वह आता है... यह सब माया है।
    • मेरी याद ही नहीं होगी तो प्राप्ति क्या होगी, जब तक बाप से सीधा योग नहीं रखेंगे तो पद कैसे पायेंगे, धारणा कैसे होगी।
    • बाप कहते हैं - तुम मामेकम् याद करो।
  • ब्रह्मा द्वारा ही मैं समझाता हूँ, ब्रह्मा द्वारा ही स्थापना हुई है।
    • त्रिमूर्ति भी जरूर चाहिए।
    • कोई तो ब्रह्मा का चित्र देख बिगड़ते हैं।
    • कई फिर कृष्ण के 84 जन्म देख बिगड़ते हैं।
    • चित्र फाड़ भी डालते हैं।
    • अरे यह तो बाप ने चित्र बनवाये हैं।
    • तो बाप बच्चों को समझाते हैं - भूलो मत, सिर्फ बाप को याद करते रहो।
  • बांधेलियों को भी रड़ियाँ नहीं मारनी हैं।
    • घर में बैठे बाप को याद करती रहो।
    • बांधेलियों को तो और ही ऊंच पद मिल सकता है।
  • तुम बच्चों को ज्ञान देने वाला है ही एक ज्ञान सागर।
  • स्प्रीचुअल नॉलेज एक बाप के सिवाए और कोई में है नहीं।
  • ज्ञान का सागर एक परमपिता परमात्मा ही है, उसको ही लिबरेटर कहा जाता है, इसमें डरने की क्या बात है।
  • बाप बच्चों को समझाते हैं, बच्चों को फिर औरों को समझाना है।
  • बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो सद्गति को पायेंगे।
  • सतयुग में है राम-राज्य, कलियुग में नहीं है।
    • सतयुग में तो एक ही राज्य है।
    • यह सब बातें तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं, जिनकी बुद्धि में धारण होती हैं, जिनको धारणा नहीं होती है, विनाश काले विपरीत बुद्धि कहेंगे, पद पा नहीं सकेंगे।
    • विनाश तो सबका होना है।
    • यह अक्षर कम है क्या!
  • शिवबाबा कहते हैं - विनाश काले प्रीत बुद्धि बनो।
    • यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है, इसमें अगर तुम प्रीत नहीं रखते हो तो पद भी नहीं मिलेगा।
    • सच्चे दिल पर साहेब राज़ी होता है।
    • दधीचि ऋषि मिसल
      • सेवा में हड्डियाँ देनी हैं।
  • कभी कोई पर ग्रहचारी बैठती है तो नशा ही उड़ जाता है फिर अनेक प्रकार के तूफान आते रहते हैं।
    • मुख से कहते इससे तो लौकिक के पास चले जायें, यहाँ तो कोई मज़ा नहीं है।
    • वहाँ तो नाटक, बाइसकोप आदि खूब हैं, जो इन बातों पर हिरे हुए हैं वह यहाँ ठहर न सकें, बड़ा मुश्किल है।
    • हाँ, पुरूषार्थ से ऊंच पद भी पा सकते हैं, खुशी में रहना चाहिए।
  • बाबा खुद कहते हैं - सुबह को उठकर नहीं बैठता हूँ तो मज़ा ही नहीं आता है।
    • लेटे रहने से कभी-कभी झुटका आ जायेगा।
    • उठकर बैठने से अच्छी प्वाइंट्स निकलती हैं, बड़ा मजा आता है।
    • अभी बाकी थोड़े दिन हैं, हम विश्व की बादशाही ले रहे हैं, बाप से।
    • यह बैठ याद करें तो भी खुशी का पारा चढ़े।
    • सुबह को चिन्तन चलता है तो दिन को भी खुशी रहती है।
    • अगर खुशी नहीं रहती तो जरूर बाप से प्रीत बुद्धि नहीं है।
    • अमृतवेले एकान्त अच्छी होती है, जितना बाप को याद करेंगे उतना खुशी का पारा चढ़ेगा।
    • इस पढ़ाई में ग्रहचारी बैठती है क्योंकि बाप को भूलते हैं।
  • बाप से वर्सा लेना है तो मन्सा-वाचा-कर्मणा सर्विस करनी है।
    • इस सर्विस में ही यह अन्तिम जन्म व्यतीत करना है।
    • अगर और दुनियावी बातों में लग गये तो फिर यह सर्विस कब करेंगे!
    • कल-कल करते मर जायेंगे।
    • बाप आये ही हैं स्वर्ग में ले जाने के लिए।
    • यहाँ तो लड़ाई में कितने मरते हैं, कितनों को दु:ख होता होगा।
      • वहाँ तो लड़ाई आदि होगी नहीं।
    • यह सब पिछाड़ी के हैं, सब खत्म होने हैं।
    • निधनके ऐसे मरेंगे, धनी के जो होंगे वह राज्य भाग्य पायेंगे।
  • प्रदर्शनी में भी समझाना है कि हम अपनी कमाई से, अपने ही तन-मन-धन से अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं।
    • हम भीख नहीं माँगते हैं, जरूरत ही नहीं है।
    • ढेर भाई-बहिन इकट्ठे होकर राजधानी स्थापन करते हैं।
    • तुम करोड़ इकट्ठा कर अपना विनाश करते हो, हम पाई-पाई इकट्ठा कर विश्व का मालिक बनते हैं।
    • कितनी वन्डरफुल बात है।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) अमृतवेले एकान्त में बैठ बाप को प्यार से याद करना है।
    • दुनियावी बातों को छोड़ ईश्वरीय सेवा में लग जाना है।
  • 2) बाप से सच्ची दिल रखनी है।
    • आपस में एक दो के आशिक-माशूक नहीं बनना है।
    • प्रीत एक बाप से जोड़नी है। देहधारियों से नहीं।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • स्वार्थ शब्द के अर्थ को जान सदा एकरस स्थिति में स्थित होने वाले सहज पुरुषार्थी भव
  • आजकल एक दो में जो लगाव है वह स्नेह से नहीं लेकिन स्वार्थ से है।
  • स्वार्थ के कारण लगाव है और लगाव के कारण न्यारे नहीं बन सकते इसलिए स्वार्थ शब्द के अर्थ में स्थित हो जाओ अर्थात् पहले स्व के रथ को स्वाहा करो।
  • यह स्वार्थ गया तो न्यारे बन ही जायेंगे।
  • इस एक शब्द के अर्थ को जानने से सदा एक के और एकरस बन जायेंगे, यही सहज पुरूषार्थ है।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • फरिश्ता रूप में रहने से कोई भी विघ्न अपना प्रभाव डाल नहीं सकता।