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ओम् शान्ति।
- बाप बैठ समझाते हैं -भक्ति मार्ग में बहुत ही भक्ति की डांस की, ज्ञान की डांस नहीं की।
- भक्ति की डांस जब होती है तो ज्ञान की नहीं।
- जब ज्ञान की होती है तो भक्ति की नहीं क्योंकि भक्ति की डांस उतरती कला में ले जाती है।
- सतयुग-त्रेता में भक्ति होती नहीं।
- भक्ति शुरू होती है द्वापर से।
- जब भक्ति शुरू होती है तो ज्ञान की प्रालब्ध पूरी हो जाती है फिर उतरती कला होती है।
- कैसे उतरते हैं, सो बाप बैठ समझाते हैं।
- मैं कल्प-कल्प आकर बच्चों को कहता हूँ - तुम बच्चों ने हमारी बहुत ही ग्लानी कर दी है।
- जब-जब भारत में इस आदि सनातन देवी-देवता धर्म की बहुत ग्लानी होती है तब मैं आता हूँ।
- ग्लानी किसको कहा जाता है, वह भी समझाते हैं।
- बाप कहते हैं - मैं विकारी नर्कवासी भारत को आकर कल्प-कल्प स्वर्गवासी बनाता हूँ।
- तुम मेरी ग्लानी, आसुरी मत पर करने के कारण कितने कंगाल बन गये हो।
- रामराज्य था, अभी है रावण राज्य, जिसको हार और जीत, दिन और रात कहा जाता है।
- अब विचार करो मैं कब आऊं!
- जिन्हों को राज्य दिया, वही राज्य गँवा बैठे हैं।
- हिसाब-किताब तो सारा समझाया ही है।
- मैं आकर वर्सा देता हूँ फिर रावण आकर तुमको श्रापित करते हैं - भारत को खास, दुनिया को आम।
- भारत की महिमा का भी किसको पता नहीं है।
- पहले-पहले भारत ही था, कब था, कैसे था, कौन राज्य करते थे, किसको भी कुछ पता नहीं है।
- कुछ भी समझते नहीं हैं।
- जो देवता थे, शक्ल मनुष्य की, सीरत देवताओं की थी।
- अब सूरत भल मनुष्य की है, सीरत आसुरी है, जिसको समझाते हैं वह समझते नहीं हैं क्योंकि पारलौकिक बाप को ही नहीं जानते।
- और ही बैठ गाली देते हैं।
- बाप की ग्लानी करते-करते बिल्कुल ही कौड़ी-तुल्य बन गये हैं।
- भारत का डाउन फाल हो गया है।
- ऐसी हालत जब होती है, बाप कहते हैं, तब मैं आता हूँ।
- अभी तुम बच्चों को सम्मुख समझा रहा हूँ।
- कल्प पहले भी ऐसे ही समझाया था।
- यह दैवी-सम्प्रदाय की स्थापना हो रही है, मनुष्य से देवता बन रहे हैं।
- मनुष्यों को यह पता ही नहीं है कि बाप कब आते हैं, सतयुग, त्रेता में तुम बड़ी खुशी में प्रालब्ध भोगते हो।
- फिर द्वापर से रावण का श्राप पाते-पाते बिल्कुल ही खत्म हो जाते।
- जैसे देवतायें प्रालब्ध भोगते-भोगते त्रेता के अन्त में खत्म हो जाते हैं फिर रावण की आसुरी प्रालब्ध शुरू होती है।
- भक्ति भी पहले अव्यभिचारी होती है फिर व्यभिचारी होती है।
- सीढ़ी ठीक बनी हुई है।
- हर एक चीज़ सतोप्रधान, सतो-रजो-तमो बनती है। खाद पड़ती जाती है।
- तुम बच्चों को समझाया तो बहुत अच्छी रीति जाता है, परन्तु धारणा कम होती है।
- कोई में तो समझाने का बिल्कुल अक्ल ही नहीं है।
- कोई अच्छे अनुभवी हैं, जिनकी धारणा बड़ी अच्छी होती है।
- नम्बरवार तो होते हैं ना।
- स्टूडेन्ट्स एक समान नहीं होते।
- कुछ न कुछ नम्बर जरूर रखेंगे।
- कोई को भी समझाना है बहुत सहज।
- बाप कहते हैं - मुझे याद करो।
- मैं तुम्हारा बेहद का बाप, सृष्टि का रचयिता हूँ।
- मुझे याद करने से तुमको बेहद का वर्सा मिलेगा।
- याद से ही खाद निकलेगी।
- सिर्फ यह समझाओ कि तुम भारतवासी सतयुग में सतोप्रधान थे, अभी कलियुग में तमोप्रधान बने हो।
- आत्मा में खाद पड़ती है।
- पवित्र होने बिगर कोई वहाँ जा नहीं सकते।
- नई दुनिया में हैं ही सतोप्रधान।
- कपड़ा नया है तो कहेंगे सतोप्रधान, फिर पुराना तमोप्रधान हो जाता है।
- अभी सबका कपड़ा फटने लायक है।
- सब जड़-जड़ीभूत अवस्था को पाये हुए हैं।
- जो विश्व के मालिक थे, वही बिल्कुल गरीब बने हैं।
- फिर उनको ही साहूकार बनना है।
- इन बातों को मनुष्य नहीं जानते।
- भारत स्वर्ग था, इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था और सब धर्म वाले तो बाद में आये हैं।
- बाप तुमको रीयल बात बैठ समझाते हैं।
- गीता का देखो कितना मान है।
- पढ़ते-पढ़ते बिल्कुल ही नीचे गिर गये हैं, तब पुकारते हैं - हे पतित-पावन आओ।
- हम भ्रष्टाचारी बन गये हैं।
- सद्गति तो भगवान ही दे सकते हैं।
- बाकी शास्त्रों में तो सब है भक्ति मार्ग।
- तुम्हारी बुद्धि में बैठा हुआ है - हम बाबा के ज्ञान से देवता बनते हैं।
- अब सारी दुनिया से वैराग्य है।
- सन्यासी भी भक्ति करते हैं, गंगा स्नान आदि करते हैं ना।
- भक्ति भी सतोप्रधान, फिर रजो, तमो होती है।
- यह भी ऐसे है।
- आधाकल्प दिन, आधाकल्प रात गाई जाती है।
- ब्रह्मा के साथ जरूर ब्राह्मणों का भी होगा।
- तुम अभी दिन में जाते हो, भक्ति की रात पूरी होती है।
- भक्ति में तो बहुत दु:ख है, उनको रात कहा जाता है।
- अन्धेरे में धक्के खाते रहते हैं - भगवान से मिलने के लिए।
- भक्ति मार्ग में सद्गति देने वाला कोई होता नहीं।
- तुम्हारे सिवाए कोई भी यथार्थ रीति भगवान को नहीं जानते हैं।
- आत्मा भी बिन्दी, परमात्मा भी बिन्दी है, यह बात कोई भी समझ न सके।
- परमात्मा ही स्वयं आकर ब्रह्मा तन से समझाते हैं।
- उन्होंने फिर भागीरथ, बैल के रूप में दिखाया है।
- अब बैल की तो बात ही नहीं है।
- बाप सब बातें अच्छी रीति समझाते हैं परन्तु किसकी बुद्धि में पूरी रीति बैठता नहीं।
- बाप बैठ समझाते हैं - बच्चे मैं तुम आत्माओं का बाप हूँ।
- तुम मुझे याद करो और वर्से को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
- फिर भी कहते हो, भूल जाते हैं।
- वाह! ऐसे साजन वा बाप को भूलना चाहिए।
- स्त्री, पति को अथवा बच्चे कभी बाप को भूलते हैं क्या?
- यहाँ तुम क्यों भूलते हो?
- कहते भी हो बाबा आप हमको स्वर्ग का मालिक बना रहे हैं फिर भी भूल जाता हूँ।
- बाप कहते हैं - याद नहीं करेंगे तो अन्दर जो कट चढ़ी है, वह कैसे निकलेगी।
- मुख्य बात है ही याद की।
- अपना कोई दूसरे धर्म से तैलुक नहीं है।
- स्कूल में तो हिस्ट्री-जॉग्राफी समझाते हो।
- कोई तो बिल्कुल समझते नहीं।
- बाप पढ़ाते हैं, यह बुद्धि में बैठता नहीं है।
- अच्छा बाप और वर्सा तो याद करो कि यह भी भूल जाते हो!
- जिसके लिए आधाकल्प से भक्ति करते आये, उस बाबा को याद नहीं करते।
- तुम बच्चों की बुद्धि में है, अब हम यह शरीर छोड़ राजाई में जायेंगे, यह अन्तिम जन्म है।
- सूक्ष्मवतन में उनके फीचर्स तो वही देखते हो, वैकुण्ठ में भी देखते हो।
- जानते हो यह मम्मा-बाबा ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, तुम जब सतयुग में रहते हो तो समझते हो कि यह एक शरीर छोड़ दूसरा लेना है।
- वहाँ उनको यह पता नहीं रहता कि सतयुग के बाद त्रेता आयेगा, द्वापर आयेगा, हम उतरते जायेंगे।
- ज्ञान की बात नहीं रहती है।
- पुनर्जन्म लेते रहते हैं।
- वहाँ आत्म-अभिमानी रहते हैं फिर आत्म-अभिमानी से देह-अभिमानी बन जाते हैं।
- यह नॉलेज सिर्फ तुम ब्राह्मणों को है और कोई के पास नहीं है।
- यह ज्ञान-ज्ञानेश्वर, जो ज्ञान का सागर बाप है, वही सुनाते हैं।
- जरूर ब्रह्मा के बच्चे, ब्राह्मणों को ही सुनायेंगे।
- ब्रह्मा के बच्चे हैं - ब्राह्मण सम्प्रदाय। रात-दिन का फ़र्क है।
- तुम पुरूषार्थ कर सम्पूर्ण गुणवान बनते हो।
- सम्पूर्ण निर्विकारी, गृहस्थ व्यवहार में रहते भी तुम बाप को याद करो, कर्म तो करना ही है।
- बुद्धि का योग बाप के साथ लगा रहे।
- कर्म भल कोई भी करो, बढ़ई का काम करो वा राजाई का करो।
- राजा जनक का भी गायन हैं ना।
- राजाई करते रहो परन्तु बुद्धि का योग बाप के साथ लगाओ तो वर्सा मिल जायेगा।
- बाप कहते हैं मनमनाभव, मामेकम् याद करो।
- शिवबाबा कहते हैं सिर्फ शिव कहने से लिंग याद आयेगा।
- और तो सबके शरीर का नाम लिया जाता है, पार्ट शरीर से बजाते हैं।
- अभी तुमको आत्म-अभिमानी बनाया जाता है, जो आधाकल्प चलता है।
- इस समय सभी हैं देह-अभिमान में।
- वहाँ आत्म-अभिमानी होंगे यथा राजा-रानी तथा प्रजा।
- आयु तो सबकी बड़ी होती है।
- यहाँ सबकी आयु कम है।
- तो बाप सम्मुख बैठ बच्चों को कितना अच्छी रीति समझाते हैं - हे आत्माओं, क्योंकि आत्मा ज्ञान लेती है, धारणा आत्मा में होती है।
- बाबा को शरीर तो है नहीं।
- आत्मा में सारा ज्ञान है।
- आत्मा भी स्टार है, बाबा भी स्टार है।
- वह पुनर्जन्म नहीं लेते हैं, आत्मायें पुनर्जन्म लेती हैं इसलिए बाबा ने काम दिया था कि परमात्मा की महिमा और बच्चे की महिमा लिखकर आओ।
- दोनों की अलग-अलग है।
- श्रीकृष्ण की अलग महिमा है।
- वह साकार, वह निराकार। इतना गुणवान किसने बनाया?
- जरूर कहेंगे परमात्मा ने बनाया।
- इस समय तुम ईश्वरीय सम्प्रदाय हो।
- तुमको बाप सिखला रहे हैं।
- पीछे फिर प्रालब्ध भोगते हैं।
- सतयुग में तो कोई नहीं सिखलायेंगे।
- भक्तिमार्ग की सामग्री ही खत्म हो जाती है।
- इस दुनिया से वैराग्य भी चाहिए अर्थात् देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ अपने को अशरीरी आत्मा समझना है।
- नंगे आये थे, नंगे जाना है।
- यह पुरानी दुनिया खलास हो जानी है, हम सब नई दुनिया में जाने वाले हैं।
- बस यह याद की मेहनत करते रहो, इसमें ही फेल होते हैं।
- याद करते नहीं हैं।
- जो भी समझने के लिए आते हैं उनको भी यही समझाना है - शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा कहते हैं कि मुझे याद करो तो याद से तुम्हारी खाद निकल जायेगी, तुम विष्णुपुरी के मालिक बन जायेंगे। विष्णुपुरी ही स्वर्गपुरी है।
- तो जितना हो सके बाप को याद करो, जिस बाप को आधाकल्प याद किया है अब वह सम्मुख आये हैं।
- कहते हैं - मुझे याद करो, उनको कोई भी जानते नहीं।
- खुद ही आकर अपना परिचय देते हैं।
- मैं जो हूँ, जैसा हूँ, ऐसा कोई विरला जानते और निश्चय करते हैं।
- निश्चय कर लेते हैं तो पुरूषार्थ कर वर्सा पा लेते हैं।
- शिवबाबा कहते हैं - मुझे याद करने से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम पवित्र बन पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।
- विकर्म कोई भी नहीं करना है।
- अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) पुरूषार्थ कर सम्पूर्ण गुणवान बनना है। कर्म कोई भी हो लेकिन बाप की याद में रहकर करना है।
- कोई भी विकर्म नहीं करना है।
- 2) यह पुराना कपड़ा (शरीर) जड़जड़ीभूत है, इससे ममत्व निकाल देना है।
- आत्मा को सतोप्रधान बनाने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- करना और कहना - इन दो को समान बनाकर क्वालिटी की सेवा करने वाले सच्चे सेवाधारी भव
- सदा अटेन्शन रहे कि पहले करना है फिर कहना है।
- कहना सहज होता है, करने में मेहनत है, मेहनत का फल अच्छा होता है।
- लेकिन यदि दूसरों को कहते हो स्वयं करते नहीं, तो सर्विस के साथ-साथ डिससर्विस भी प्रत्यक्ष होती है।
- जैसे अमृत के बीच विष की एक बूंद भी पड़ने से सारा अमृत विष बन जाता है, ऐसे कितनी भी सर्विस करो लेकिन एक छोटी सी गलती सर्विस को समाप्त कर देती है।
- इसलिए पहले अपने ऊपर अटेन्शन दो तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- अनेकता में एकता लाना, बिगड़ी को बनाना - यह सबसे बड़ी विशेषता है।
- मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
- "चढ़ती कला और गिरती कला की मुख्य जड़ क्या है?''
- बहुत मनुष्य यह प्रश्न पूछते हैं कि जब इतना पुरुषार्थ कर जीवनमुक्ति पद को पाते हैं तो फिर वहाँ क्या कारण बनता जो हम नीचे गिरते हैं?
- भल हम कहते हैं कि यह हार और जीत का खेल है, इसमें चढ़ती कला और उतरती कला होने का भी कोई कारण जरूर है।
- जिस कारण के आधार पर यह खेल चलता है, जैसे पुरुषार्थ से हम चढ़ रहे हैं वैसे गिरने का भी कारण जरुर है।
- अब कारण भी कोई बड़ा नहीं है जरा सी भूल है जैसे परमात्मा कहता है मुझे याद करो तो मैं तुमको मुक्ति जीवनमुक्ति पद दूँगा वैसे ही जब बॉडी कॉन्सेस हो परमात्मा को भूलते हैं तो गिरते हैं।
- फिर वाम मार्ग में चले जाते हैं फिर 5 विकारों में फंसने से दु:ख उठाते हैं तो यह हुआ अपना दोष, न कि रचता का दोष है।
- जो लोग कहते हैं दु:ख सुख परमात्मा ही देता है यह कहना बिल्कुल रांग है।
- बाबा सुख रचता है न कि दु:ख रचता।
- बाकी हम श्रेष्ठ कर्म से सुख उठाते हैं और भ्रष्ट कर्म से दु:ख भोगते हैं, बाकी अच्छे कर्म का फल और बुरे कर्मों का दण्ड परमात्मा द्वारा अवश्य मिलता है।
- परन्तु ऐसे नहीं कहेंगे कि सुख-दु:ख दोनों परमात्मा देता है, नहीं।
- परमात्मा तो चढ़ती कला में हमारे साथ है, बाकी गिराने वाली माया है।
- कॉमन रीति में भी कोई साथ अथवा मदद लेते हैं सुख के लिये।
- बाकी दु:ख उठाने के लिये कोई किसका साथ नहीं लेते।
- बाकी तो जैसा-जैसा कर्म वैसा-वैसा फल की रिजल्ट।
- तो इस ड्रामा के अन्दर दु:ख-सुख का खेल अपने कर्मों के ऊपर बना हुआ है, परन्तु तुच्छ बुद्धि मनुष्य इस राज़ को नहीं जानते।
- अच्छा - ओम् शान्ति।
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