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ओम् आज बापदादा अपने चारों ओर के हिम्मतवान बच्चों को देख रहे हैं।
- आदि से
अब तक हर एक ब्राह्मण आत्मा हिम्मत के आधार से बापदादा की मदद के पात्र
बनी है और ‘हिम्मते बच्चे मददे बाप' के वरदान प्रमाण पुरूषार्थ में नम्बरवार आगे
बढ़ते रहे हैं।
- बच्चों की एक कदम की हिम्मत और बाप की पद्म कदमों की मदद हर
एक बच्चे को प्राप्त होती है क्योंकि यह बापदादा का वायदा कहो, वर्सा कहो सब
बच्चों के प्रति है और इसी श्रेष्ठ सहज प्राप्ति के कारण ही 63 जन्मों की निर्बल
आत्मायें बलवान बन आगे बढ़ती जा रही हैं।
- ब्राह्मण जन्म लेते ही पहली हिम्मत
कौनसी धारण की?
- पहली हिम्मत - जो असम्भव को सम्भव करके दिखाया,
पवित्रता के विशेषता की धारणा की।
- हिम्मत से दृढ़ संकल्प किया कि हमें पवित्र
बनना ही है और बाप ने पद्मगुणा मदद दी कि आप आत्मायें अनादि-आदि पवित्र थी,
अनेक बार पवित्र बनी हैं और बनती रहेंगी।
- नई बात नहीं है।
- अनेक बार की श्रेष्ठ
स्थिति को फिर से सिर्फ रिपीट कर रहे हो।
- अब भी आप पवित्र आत्माओं के भक्त
आपके जड़ चित्रों के आगे पवित्रता की शक्ति मांगते रहते हैं, आपकी पवित्रता के
गीत गाते रहते हैं।
- साथ-साथ आपके पवित्रता की निशानी हर एक पूज्य आत्मा के
ऊपर लाइट का ताज है।
- ऐसे स्मृति द्वारा समर्थ बनाया अर्थात् बाप की मदद से
आप निर्बल से बलवान बन गये।
- इतने बलवान बने जो विश्व को चैलेन्ज करने के
निमित्त बने हो कि हम विश्व को पावन बना कर ही दिखायेंगे!
- निर्बल से इतने
बलवान बनें जो द्वापर के नामीग्रामी ऋषि-मुनि महान् आत्मायें जिस बात को
खण्डित करते रहे हैं कि प्रवृत्ति में रहते पवित्र रहना असम्भव है और स्वयं
आजकल के समय प्रमाण अपने लिए भी कठिन समझते हैं, और आप उन्हों के
आगे नैचुरल रूप में वर्णन करते हो कि यह तो आत्मा का अनादि, आदि निजी
स्वरूप है, इसमें मुश्किल क्या है?
- इसको कहते हैं हिम्मते बच्चे मददे बाप।
- असम्भव, सहज अनुभव हुआ और हो रहा है।
- जितना ही वह असम्भव कहते हैं,
उतना ही आप अति सहज कहते हो।
- तो बाप ने नॉलेज के शक्ति की मदद और
याद द्वारा आत्मा के पावन स्थिति के अनुभूति की शक्ति की मदद से परिवर्तन
कर लिया।
- यह है पहले कदम की हिम्मत पर बाप की पद्मगुणा मदद।
- ऐसे ही मायाजीत बनने के लिए चाहे कितने भी भिन्न-भिन्न रूप से माया वार
करने के लिए आदि से अब तक आती रहती है, कभी रॉयल रूप से आती, कभी प्रख्यात रूप में आती, कभी गुप्त रूप में आती और कभी आर्टीफिशल ईश्वरीय रूप
में आती।
- 63 जन्म माया के साथी बन करके रहे हो।
- ऐसे पक्के साथियों को छोड़ना
भी मुश्किल होता है इसलिए भिन्न-भिन्न रूप से वह भी वार करने से मजबूर है
और आप यहाँ मजबूत हैं।
- इतना वार होते भी जो हिम्मत वाले बच्चे हैं और बाप
की पद्मगुणा मदद के पात्र बच्चे हैं, मदद के कारण माया के वार को चैलेन्ज करते
कि आपका काम है आना और हमारा काम है विजय प्राप्त करना।
- वार को खेल
समझते हो, माया के शेर रूप को चींटी समझते हो क्योंकि जानते हो कि यह माया
का राज्य अब समाप्त होने वाला है और हम अनेक बार के विजयी आत्माओं की
विजय 100 प्रतिशत निश्चित है इसलिए यही ‘निश्चित' का नशा, बाप की पद्मगुणा
मदद का अधिकार प्राप्त कराता है।
- तो जहाँ हिम्मते बच्चे मददे सर्वशक्तिवान बाप
है, वहाँ असम्भव को सम्भव करना वा माया को, विश्व को चैलेन्ज करना कोई बड़ी
बात नहीं है।
- ऐसे समझते हो ना?
- बापदादा यह रिजल्ट देख रहे थे कि आदि से अब तक हरेक बच्चा हिम्मत के
आधार पर मदद के पात्र बन कहाँ तक सहज पुरूषार्थी बन आगे बढ़े हैं, कहाँ तक
पहुँचे हैं।
- तो क्या देखा?
- बाप की मदद अर्थात् दाता की देन, वरदाता के वरदान तो
सागर के समान हैं।
- लेकिन सागर से लेने वाले कोई बच्चे सागर समान भरपूर बन
औरों को भी बना रहे हैं और कोई बच्चे मदद के विधि को न जान मदद लेने के
बजाये अपनी ही मेहनत में कभी तीव्रगति, कभी दिलशिकस्त के खेल में नीचे-ऊपर
होते रहते हैं।
- और कोई बच्चे कभी मदद, कभी मेहनत।
- बहुत समय मदद भी हैं
लेकिन कहाँ-कहाँ अलबेलेपन के कारण मदद के विधि को अपने समय पर भूल जाते
हैं और हिम्मत रखने के बजाए अलबेलाई के कारण अभिमान में आ जाते हैं कि
हम तो सदा पवित्र हैं ही, बाप हमें मदद नहीं करेंगे तो किसको करेंगे, बाप बांधा
हुआ है।
- इस अभिमान के कारण हिम्मत द्वारा मदद की विधि को भूल जाते हैं।
- अलबेलेपन का अभिमान और स्वयं पर अटेन्शन देने का अभिमान मदद से वंचित
कर देता है।
- समझते हैं अब तो बहुत योग लगा लिया, ज्ञानी तू आत्मा भी बन गये,
योगी तू आत्मा भी बन गये, सेवाधारी भी बहुत नामीग्रामी बन गये, सेन्टर्स इन्चार्ज
भी बन गये, सेवा की राजधानी भी बन गई, प्रकृति भी सेवा योग्य बन गई, आराम
से जीवन बिता रहे हैं।
- यह है अटेन्शन रखने में अलबेलापन इसलिए जहाँ जीना है
वहाँ तक पढ़ाई और सम्पूर्ण बनने का अटेन्शन, बेहद के वैराग्य वृत्ति का अटेन्शन
देना है - इसे भूल जाते हैं।
- ब्रह्मा बाप को देखा, अन्तिम सम्पूर्ण कर्मातीत स्थिति
तक स्वयं पर, सेवा पर, बेहद की वैराग वृत्ति पर, स्टूडेन्ट लाइफ की रीति से
अटेन्शन देकर निमित्त बन कर दिखाया इसलिए आदि से अन्त तक हिम्मत में रहे,
हिम्मत दिलाने के निमित्त बने।
- तो बाप के नम्बरवन मदद के पात्र बन नम्बरवन
प्राप्ति को प्राप्त हुए।
- भविष्य निश्चित होते भी अलबेले नहीं रहे।
- सदा अपने तीव्र
पुरूषार्थ के अनुभव बच्चों के आगे अन्त तक सुनाते रहे।
- मदद के सागर में ऐसे
समा गये जो अब भी बाप समान हर बच्चे को अव्यक्त रूप से भी मददगार हैं।
- इसको कहते हैं एक कदम की हिम्मत और पद्मगुणा मदद के पात्र बनना।
- तो बापदादा देख रह थे कि कई बच्चे मदद के पात्र होते भी मदद से वंचित
क्यों रह जाते?
- इसका कारण सुनाया कि हिम्मत के विधि को भूलने कारण,
अभिमान अर्थात् अलबेलापन और स्व के ऊपर अटेन्शन की कमी के कारण।
- विधि
नहीं तो वरदान से वंचित रह जाते।
- सागर के बच्चे होते हुए भी छोटे-छोटे तालाब
बन जाते।
- जैसे तालाब का पानी खड़ा हुआ होता है, ऐसे पुरूषार्थ के बीच में खड़े हो
जाते हैं इसलिए कभी मेहनत, कभी मौज में रहते।
- आज देखो तो बड़ी मौज में है
और कल छोटे से रोड़े (पत्थर) के कारण उसको हटाने की मेहनत में लगा हुआ है।
- पहाड़ भी नहीं, छोटा-सा पत्थर है।
- है महावीर पाण्डव सेना लेकिन छोटा-सा
कंकड़-पत्थर भी पहाड़ बन जाता।
- उसी मेहनत में लग जाते हैं।
- फिर बहुत हंसाते हैं।
- अगर कोई उन्हों को कहते हैं कि यह तो बहुत छोटा कंकड़ है, तो हंसी की बात क्या
कहते?
- आपको क्या पता, आपके आगे आये तो पता पड़े। बाप को भी कहते - आप
तो हो ही निराकार, आपको भी क्या पता।
- ब्रह्मा बाबा को भी कहते - आपको तो
बाप की लिफ्ट है, आपको क्या पता।
- बहुत अच्छी-अच्छी बातें करते हैं।
- लेकिन
इसका कारण है छोटी-सी भूल।
- हिम्मते बच्चे मददे खुदा - इस राज़ को भूल जाते
हैं।
- यह एक ड्रामा की गुह्य कर्मों की गति है।
- हिम्मते बच्चे मददे खुदा, अगर यह
विधि विधान में नहीं होती तो सभी विश्व के पहले राजा बन जाते।
- एक ही समय
पर सभी तख्त पर बैठेंगे क्या?
- नम्बरवार बनने का विधान इस विधि के कारण ही
बनता है।
- नहीं तो, सभी बाप को उल्हना देवें कि ब्रह्मा को ही क्यों पहला नम्बर
बनाया, हमें भी तो बना सकते?
- इसलिए यह ईश्वरीय विधान ड्रामा अनुसार बना
हुआ है।
- निमित्त मात्र यह विधान नूँधा हुआ है कि एक कदम हिम्मत का और पद्म
कदम मदद का।
- मदद का सागर होते हुए भी यह विधान की विधि ड्रामा अनुसार
नूँधी हुई है।
- तो जितना चाहे हिम्मत रखो और मदद लो।
- इसमें कमी नहीं रखते।
- चाहे एक वर्ष का बच्चा हो, चाहे 50 वर्ष का बच्चा हो, चाहे सरेन्डर हो, चाहे प्रवृत्ति
वाले हो - अधिकार समान है।
- लेकिन विधि से प्राप्ति है।
- तो ईश्वरीय विधान को
समझा ना?
- हिम्मत तो बहुत अच्छी रखी है।
- यहाँ तक पहुँचने की भी हिम्मत रखते हो तब
तो पहुँचते हो ना।
- बाप के बने हो तो भी हिम्मत रखी हैं, तब बने हो।
- सदा हिम्मत
की विधि से मदद के पात्र बन चलना और कभी-कभी विधि से सिद्धि प्राप्त करना -
इसमें अन्तर हो जाता है।
- सदा हर कदम में हिम्मत से मदद के पात्र बन नम्बरवन
बनने के लक्ष्य को प्राप्त करो।
- नम्बरवन एक ब्रह्मा बनेगा लेकिन फर्स्ट डिवीजन में
संख्या है इसलिए नम्बरवन कहते हैं। समझा?
- फर्स्ट डिवीजन में तो आ सकते हो
ना?
- इसको कहते हैं नम्बरवन में आना।
- कभी अलबेलेपन की लीला बच्चों की
सुनायेंगे। बहुत अच्छी लीला करते हैं।
- बापदादा तो सदा बच्चों की लीला देखते रहते
हैं।
- कभी तीव्र पुरूषार्थ की लीला भी देखते, कभी अलबेलेपन की लीला भी देखते हैं।
अच्छा।
- कर्नाटक वालों की विशेषता क्या है?
- हर एक ज़ोन की अपनी-अपनी विशेषता
है।
- कर्नाटक वालों की अपनी बहुत अच्छी भाषा है - भावना की भाषा में होशियार
हैं।
- ऐसे तो हिन्दी कम समझते हैं लेकिन कर्नाटक की विशेषता है भावना की भाषा
में नम्बरवन इसलिए भावना का फल सदा मिलता है, और कुछ नहीं बोलेंगे लेकिन
सदा बाबा-बाबा बोलते रहेंगे।
- यह भावना की श्रेष्ठ भाषा जानते हैं।
- भावना की धरती
है ना।
- अच्छा।
चारों ओर के हिम्मत वाले बच्चों को, सदा बाप की मदद प्राप्त करने वाले पात्र
आत्माओं को, सदा विधान को जान विधि से सिद्धि प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं
को, सदा ब्रह्मा बाप समान अन्त तक पढ़ाई और पुरूषार्थ की विधि में चलने वाले
श्रेष्ठ, महान् बाप समान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
- पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
- 1- अपने को डबल लाइट फरिश्ता अनुभव करते हो?
- डबल लाइट स्थिति
फरिश्तेपन की स्थिति है।
- फरिश्ता अर्थात् लाइट।
- जब बाप के बन गये तो सारा बोझ
बाप को दे दिया ना?
- जब बोझ हल्का हो गया तो फरिश्ते हो गये।
- बाप आये ही हैं
बोझ समाप्त करने के लिए।
- तो जब बाप बोझ समाप्त करने वाले हैं तो आप सबने
बोझ समाप्त किया है ना?
- कोई छोटी-सी गठरी छिपाकर तो नहीं रखी है?
- सब कुछ
दे दिया या थोड़ा-थोड़ा समय के लिए रखा है?
- थोड़े-थोड़े पुराने संस्कार हैं या वह भी
खत्म हो गये?
- पुराना स्वभाव या पुराना संस्कार, यह भी तो खजाना है ना।
- यह भी
दे दिया है?
- अगर थोड़ा भी रहा हुआ होगा तो ऊपर से नीचे ले आयेगा, फरिश्ता बन
उड़ती कला का अनुभव करने नहीं देगा।
- कभी ऊंचे तो कभी नीचे आ जायेंगे इसलिए
बापदादा कहते हैं सब दे दो।
- यह रावण की प्रापर्टी है ना।
- रावण की प्रापर्टी अपने
पास रखेंगे तो दु:ख ही पायेंगे।
- फरिश्ता अर्थात् जरा भी रावण की प्रापर्टी न हो,
पुराना स्वभाव या संस्कार आता है ना? कहते हो ना - चाहते तो नहीं थे लेकिन हो
गया, कर लिया या हो जाता है।
- तो इससे सिद्ध है कि छोटी-सी पुरानी गठरी अपने
पास रख ली है।
- किचड़-पट्टी की गठरी है।
- तो सदा के लिए फरिश्ता बनना - यही
ब्राह्मण जीवन है।
- पास्ट खत्म हो गया। पुराने खाते भस्म कर दिये।
- अभी नई बातें,
नये खाते हैं।
- अगर थोड़ा भी पुराना कर्जा रहा होगा तो सदा ही माया का मर्ज लगता
रहेगा क्योंकि कर्ज को मर्ज कहा जाता है इसलिए सारा ही खाता समाप्त करो।
- नया
जीवन मिल गया तो पुराना सब समाप्त।
- 2- सदा ‘वाह-वाह' के गीत गाने वाले हो ना?
- ‘हाय-हाय' के गीत समाप्त हो
गये और ‘वाह-वाह' के गीत सदा मन से गाते रहते।
- जो भी श्रेष्ठ कर्म करते तो मन
से क्या निकलता?
- वाह मेरा श्रेष्ठ कर्म! या वाह श्रेष्ठ कर्म सिखलाने वाले! या वाह
श्रेष्ठ समय, श्रेष्ठ कर्म कराने वाले! तो सदा ‘वाह-वाह!' के गीत गाने वाली आत्मायें
हो ना?
- कभी गलती से भी ‘हाय' तो नहीं निकलता?
- हाय, यह क्या हो गया -
नहीं।
- कोई दु:ख का नज़ारा देख करके भी ‘हाय' शब्द नहीं निकलना चाहिए।
- कल
‘हाय-हाय' के गीत गाते थे और आज ‘वाह-वाह' के गीत गाते हो। इतना अन्तर हो
गया!
- यह किसकी शक्ति है? बाप की या ड्रामा की? (बाप की) बाप भी तो ड्रामा के
कारण आया ना।
- तो ड्रामा भी शक्तिशाली हुआ।
- अगर ड्रामा में पार्ट नहीं होता तो
बाप भी क्या करता।
- बाप भी शक्तिशाली है और ड्रामा भी शक्तिशाली है।
- तो दोनों
के गीत गाते रहो - वाह ड्रामा वाह!
- जो स्वप्न में भी न था, वह साकार हो गया।
- घर बैठे सब मिल गया।
- घर बैठे इतना भाग्य मिल जाए - इसको कहते हैं डायमन्ड
लाटरी।
- 3- संगमयुगी स्वराज्य अधिकारी आत्मायें बने हो?
- हर कर्मेन्द्रिय के ऊपर
अपना राज्य है?
- कोई कर्मेन्द्रिय धोखा तो नहीं देती है?
- कभी संकल्प में भी हार तो
नहीं होती है?
- कभी व्यर्थ संकल्प चलते हैं?
- ‘स्वराज्य अधिकारी आत्मायें हैं' - इस
नशे और निश्चय से सदा शक्तिशाली बन मायाजीत सो जगतजीत बन जाते हैं।
- स्वराज्य अधिकारी आत्मायें सहजयोगी, निरन्तर योगी बन सकते हैं।
- स्वराज्य
अधिकारी के नशे और निश्चय से आगे बढ़ते चलो।
- मातायें नष्टोमोहा हो या मोह
है?
- पाण्डवों को कभी क्रोध का अंश मात्र जोश आता है?
- कभी कोई थोड़ा नीचे-ऊपर
करे तो क्रोध आयेगा?
- थोड़ा सेवा का चांस कम मिले, दूसरे को ज्यादा मिले तो
बहन पर थोड़ा-सा जोश आयेगा कि यह क्या करती है?
- देखना, पेपर आयेगा क्योंकि
थोड़ा भी देह-अभिमान आया तो उसमें जोश या क्रोध सहज आ जाता है इसलिए
सदा स्वराज्य अधिकारी अर्थात् सदा ही निरहंकारी, सदा ही निर्माण बन सेवाधारी
बनने वाले।
- मोह का बन्धन भी खत्म। अच्छा।
- वरदान :-
- ( All Blessings of 2021)
- बाप समान अपने हर बोल व कर्म का यादगार बनाने वाले
दिलतख्तनशीन सो राज्य तख्तनशीन भव
- जैसे बाप द्वारा जो भी बोल निकलते हैं वह यादगार बन जाते हैं, ऐसे जो बाप
समान हैं वो जो भी बोलते हैं वह सबके दिलों में समा जाता है अर्थात् यादगार रह
जाता है।
- वो जिस आत्मा के प्रति संकल्प करते तो उनके दिल को लगता है।
- उनके
दो शब्द भी दिल को राहत देने वाले होते हैं, उनसे समीपता का अनुभव होता है
इसलिए उन्हें सब अपना समझते हैं।
- ऐसे समान बच्चे ही दिलतख्तनशीन सो राज्य
तख्तनशीन बनते हैं।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- अपनी उड़ती कला द्वारा हर समस्या को बिना किसी रूकावट से पार करने
वाले उड़ता पंछी बनो।
- सूचनाः - आज मास का तीसरा रविवार अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस है, बाबा के
सभी बच्चे सायं 6.30 से 7.30 बजे तक विशेष डबल लाइट फरिश्ते स्वरूप में
स्थित हो योग अभ्यास करें। अपनी शुद्ध शक्तिशाली मन्सा शक्तियों से पूरे विश्व
को सकाश देने की सेवा करें।
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