23.03.1970
बापदादा को भी नशा होता है कि ऐसे लायक बच्चे हैं...
ऐसे बच्चे ही तीनों तख़्त के अधिकारी बनते हैं। त्रिमूर्ति तख़्त भी है।
अगर एक तख़्त नशीन बने तो तीनों तख़्त के बनेंगे। बाप तख़्त नशीन बच्चों को देखते हैं तो क्या होता है?
बापदादा को भी नशा होता है कि ऐसे लायक बच्चे हैं। ..."
23.10.1970
स्वमान लायक नहीं दिखाई पड़ता है...
जो अपने को घोड़ेसवार समझते हैं वह अपने को वारिस समझते हैं?
वारिस का पूर्ण अधिकार लेना है वा नहीं? जब लक्ष्य पूरा वर्सा लेने का है तो घोड़ेसवार क्यों? अगर घोड़ेसवार हैं तो मालूम है नम्बर कहाँ जायेगा?
सेकण्ड ग्रेड वाले कहाँ आयेंगे इतनी परवरिश लेने के बाद भी सेकण्ड ग्रेड।
अगर बहुत समय से सेकण्ड ग्रेड पुरुषार्थ ही रहा तो वर्सा भी बहुत समय सेकण्ड ग्रेड मिलेगा। बाकी थोड़ा समय फर्स्ट ग्रेड में अनुभव करेंगे।
सर्वशक्तिमान बाप के बच्चे कहलाने वाले और व्यक्त-अव्यक्त द्वारा पालना लेने वाले फिर सेकण्ड ग्रेड।
ऐसे मुख से कहना भी शोभता नहीं है। या तो आज से अपने को सर्वशक्तिमान के बच्चे न कहलाओ।
बापदादा ऐसे पुरुषार्थियों को बच्चे न कहकर क्या कहते हैं? मालूम हैं? बच्चे नहीं कच्चे हैं। अभी तक भी ऐसा पुरुषार्थ करना बच्चों के स्वमान लायक नहीं दिखाई पड़ता है। इसलिए फिर भी बापदादा कहते हैं कि बीती सो बीती करो। अब से अपने को बदलो। ..."
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